विश्व विरासत दिवस के अवसर पर यूनेस्को की ओर से श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को अपने ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में शामिल करने को भारतीय संस्कृति और दार्शनिक विरासत के लिए ऐतिहासिक ही कहा जाएगा। इस उपलब्धि ने हर भारतीय के मन में गर्व की भावना जगा दी है। इन ग्रंथों को मिला यह सम्मान न केवल भारत की शाश्वत बुद्धिमत्ता और समृद्ध संस्कृति को वैश्विक मंच पर स्थापित करता है, बल्कि इसकी गौरवशाली विरासत को भी समृद्ध करने वाला है। यह उपलब्धि भारत को वैश्विक सांस्कृतिक और बौद्धिक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी स्थापित करने वाली तो है ही, विश्व समुदाय को यह संदेश देने वाली भी है कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा सदैव प्रासंगिक है।
गीता हिन्दुओं का पवित्र ग्रंथ होने के साथ जीवन दर्शन, निष्काम कर्म और कर्तव्यबोध कराने वाले भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों के संग्रह के रूप में सार्वभौमिक शिक्षा का मजबूत आधार भी है। वहीं, भरत मुनि का नाट्यशास्त्र भारतीय प्रदर्शन कलाओं का आधार है, जो नृत्य, संगीत, और नाटक के सौंदर्यशास्त्र को परिभाषित करता है। इन दोनों ग्रंथों ने सदियों से न केवल भारत, बल्कि विश्व भर की सभ्यता और चेतना को आकार देने का काम किया है। गीता का कर्मयोग और नाट्यशास्त्र का सौंदर्यबोध वैश्विक स्तर पर नेतृत्व, नैतिकता, और रचनात्मकता के क्षेत्र में आने वाली पीढिय़ों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता रहेगा। यह जरूर कहा जा सकता है कि दोनों कालजयी कृतियों को यह मान्यता काफी पहले मिल जानी चाहिए थी। क्योंकि ये दोनों ग्रंथ न केवल हमारी प्राचीन विरासत के प्रतीक हैं बल्कि इनमें भविष्य को प्रेरित करने वाली शक्ति भी निहित है। कूटनीतिक संबंधों को लेकर गीता के उपदेश आज भी काफी उपयोगी साबित होते हैं। यूनेस्को की यह मान्यता निश्चित ही भारत के सांस्कृतिक पर्यटन और शैक्षणिक अनुसंधान को बढ़ावा देने वाली भी साबित होगी। जाहिर तौर पर इन ग्रंथों के अध्ययन को लेकर विश्व समुदाय की रुचि और बढ़ेगी। इससे भारत में शोध संस्थानों और सांस्कृतिक केन्द्रों के लिए नए अवसर भी पैदा हो सकेंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि यह हमारी युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व व इसके संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी का भाव बढ़ाने वाला होगा। एक तरह से आधुनिकता और परम्परा के बीच संतुलन निभाने का काम भी इस तरह के शोध अध्ययन में महती भूमिका निभाने वाला होगा। इस बड़ी उपलब्धि के साथ एक जिम्मेदारी भी हम सबकी बनती है। भारत को इन ग्रंथों के संरक्षण, प्रचार, और वैश्विक स्तर पर उनके संदेशों को प्रस्तुत करने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे। इसके लिए डिजिटल संग्रह, अनुवाद और वैश्विक शैक्षिक मंचों पर इनके प्रचार की आवश्यकता है। यह मान्यता सिर्फ प्रतीकात्मक गर्व तक सीमित न रह जाए इसलिए हमारी सांस्कृतिक और बौद्धिक पहचान को मजबूती देने के लिए ऐसे कदम जरूरी हैं।
निस्संदेह, गीता और नाट्यशास्त्र का यह सम्मान भारत की वैश्विक साख को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी प्राचीन विरासत न केवल अतीत की धरोहर, बल्कि भविष्य को प्रेरित करने वाली शक्ति भी है।
Updated on:
18 Apr 2025 09:31 pm
Published on:
18 Apr 2025 09:27 pm