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Patrika Opinion: मस्क-रामास्वामी की जोड़ी पर रहेगी दुनिया की निगाह

माना जा रहा कि नई तकनीकों के इस्तेमाल से सरकार के कामकाज को ज्यादा प्रभावी बनाने के प्रयास होंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग की नौकरशाही में औपनिवेशिक मानसिकता को खारिज करने का काम यह जोड़ी कर सकती है।

Donald Trump appointed Indian origin Vivek Ramaswamy exits DOGE Elon Musk
Donald Trump, Vivek Ramaswamy, Elon Musk

सरकारी कामकाज का ढर्रा लालफीताशाही के रूप में बदनाम है। काम नहीं करना या जैसे-तैसे करना ‘सरकारी रवैये’ का पर्याय बन चुका है। पूरी दुनिया इस ‘सरकारी रवैये’ यानी नौकरशाही से परेशान है और इससे निपटने का रास्ता खोज रही है। ऐसे में अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने नया दक्षता विभाग यानी डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) बनाकर दुनियाभर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। यह विभाग सरकारी कामकाज में दक्षता लाने के साथ-साथ खर्च में कटौती लाने की जिम्मेदारी निभाएगा।

इस घोषणा के बाद से ही सरकार के कामकाज को परंपरागत नजरिए से देखने-चलाने वालों की भौहें तन गई हैं। नए विभाग का महत्त्व इससे समझा जा सकता है कि जीओजीई की जिम्मेदारी दो अरबपतियों उद्योगपति एलन मस्क और भारतवंशी विवेक रामास्वामी को दी गई है। ट्रंप ने यह कहकर और सनसनी फैला दी है कि ‘यह हमारे समय का मैनहट्टन प्रोजेक्ट बन सकता है।’ मैनहट्टन प्रोजेक्ट का उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रेकॉर्ड समय में परमाणु बम विकसित करना था। ट्रंप के संकेतों के मायने दो संदर्भ में निकाले जा रहे हैं। एक यह कि नया विभाग कम समय में बड़े लक्ष्य तक पहुंचेगा और दूसरा यह कि नौकरशाही में विस्फोटक परिवर्तन करेगा। डीओजीई की रूपरेखा अभी स्पष्ट नहीं है पर माना जा रहा है कि नया विभाग ट्रंप प्रशासन को ज्यादा सक्षम बनाने के लिए कदम उठाएगा। मस्क का मानना है कि ‘इससे पूरी प्रणाली और फिजूलखर्जी में शामिल लोगों में हडक़ंप मच जाएगा और सरकारी खर्च में कम से कम दो ट्रिलियन डॉलर (करीब 168 लाख करोड़ रुपए) की कटौती होगी।’ माना जा रहा कि नई तकनीकों के इस्तेमाल से सरकार के कामकाज को ज्यादा प्रभावी बनाने के प्रयास होंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग की नौकरशाही में औपनिवेशिक मानसिकता को खारिज करने का काम यह जोड़ी कर सकती है।

भारत में भी गाहे-बगाहे नौकरशाही पर लगाम लगाने के प्रयास हुए हैं। पिछले दिनों उच्च नौकरशाही में शुरू हुई ‘लैटरल एंट्री’ का मुद्दा काफी गर्म रहा था। विपक्ष ने नरेंद्र मोदी सरकार की ऐसी नियुक्तियों पर आपत्ति की थी तो सत्तापक्ष ने इसकी परिपाटी शुरू करने का ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फोड़ा था। हालांकि लैटरल एंट्री से सरकार को क्या फायदा हुआ, इसका कोई आकलन हमारे सामने नहीं है। अक्सर सरकारी तंत्र में बाहरी हस्तक्षेप को हितों के टकराव के रूप में देखे जाने की आशंका रहती है। दुनिया की निगाह इस पर रहेगी कि मस्क-रामास्वामी की जोड़ी आखिर कैसे ऐसी आशंकाओं से खुद को दूर रख पाती है।