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Patrika Opinion: खुल रहा है ब्याज दरों में कटौती का रास्ता

मध्य-पूर्व में संघर्ष बढऩे पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है और विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। जाहिर है भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। रिजर्व बैंक यही कर रहा है।

रिजर्व बैंक की नवगठित मौद्रिक नीति समिति की पहली बैठक में सदस्यों ने मतदान कर 5-1 से ब्याज दरों में कोई बदलाव न करने का फैसला भले ही किया हो पर अपने रुख में बदलाव कर आने वाले दिनों में रेपो रेट में कटौती का संकेत जरूर दे दिया है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड के बाद हाल ही में अमरीकी फेडरल रिजर्व ने अपनी दरों में कटौती करके दुनिया को इसके अनुसरण के लिए प्रेरित कर दिया है। इसलिए लगातार 10वीं बार ब्याज दरें यथावत रखने के बाद अब दिसंबर में होने वाली भारतीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक में दरों में कटौती की संभावना बढ़ गई है। यदि कोई अप्रत्याशित हालात न बने तो दिसंबर या फरवरी तक ब्याज दरें कम हो सकती हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास मानते हैं कि उच्च ब्याज दरों के कारण विकास दर में कमी के संकेत नहीं हैं, इसलिए भी शीर्ष बैंक कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। फिर भी अच्छी आर्थिक स्थिति का लाभ नीचे तक उतर सके, इसलिए ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद लंबे समय से की जा रही है।

रिजर्व बैंक के लिए खाने-पीने के सामान में महंगाई चिंता की बात बनी हुई है। हालांकि फरवरी के 8.6 फीसदी से घटकर यह अगस्त में 5.66 फीसदी हो गई है। केंद्रीय बैंक को उम्मीद है कि सितंबर में खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल के बावजूद आने वाले महीनों में कीमतों में कमी आएगी, क्योंकि अच्छे मानसून के कारण देश में कृषि उत्पादों की स्थिति बेहतर होगी और खाद्यान्न भंडार भी भरा रहेगा। शीर्ष बैंक को अंतरराष्ट्रीय अशांति (इजरायल-गाजा-ईरान, रूस-यूक्रेन) और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव के कारण अर्थव्यवस्था के लिए विपरीत हालात पैदा होने की भी आशंका है। मध्य-पूर्व में संघर्ष बढऩे पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है और विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। जाहिर है भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। रिजर्व बैंक यही कर रहा है। अब यदि अनुमान के अनुसार अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में मुद्रास्फीति दर घटकर 4.3 फीसदी रह जाती है तो माना जाएगा कि महंगाई दर मोटे तौर पर नियंत्रित है।

रिजर्व बैंक ने इस साल विकास दर 7.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया हो जो अन्य रेटिंग एजेंसियों से ज्यादा है। उदाहरण के लिए, आइसीआरए ने भारत के विकास की दर 7 फीसदी तो क्रिसिल ने 6.8 फीसदी रहने की उम्मीद की है। दुनिया में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमें और तेजी से विकास करना होगा और इसके लिए सबसे जरूरी यही है कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाई जाए और इसके लिए ब्याज दरों में कटौती करना भी एक तरीका है। मौद्रिक नीति समिति की बैठक में इसका रास्ता खुलता हुआ दिख रहा है।