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प्लास्टिक नहीं, पत्तल-दोने अपनाएं, स्वास्थ्य बचाएं

बाबूलाल जाजू, पर्यावरणविद्

जयपुर

Neeru Yadav

Aug 17, 2025

आज हर तरफ एक ही चीज नजर आ रही है प्लास्टिक। शादी-ब्याह से लेकर गली के चाय-ठेलों तक, हर जगह डिस्पोजेबल प्लेट, गिलास, चम्मच और पन्नियां। लोग कहते है, सस्ता है, आसान है, लेकिन सच कहूं तो यही आसान रास्ता हमारे साथ-साथ हमारी धरती, हमारे पानी और हमारे जीव-जंतुओं के लिए धीमा जहर बन चुका है।
प्लास्टिक की एक प्लेट को गलने में सैंकड़ों साल लगते हैं। इस बीच यह मिट्टी को बंजर कर देती है, नालों-नदियों को जाम कर देती है और हमारे खाने में जहर घोल देती है। कभी सोचा है कि जब हम गरमा-गरम चाय या सब्जी प्लास्टिक में डालते हैं, तो डिस्पोजेबल के घातक केमिकल गर्म पेय पदार्थों में घुल जाते हैं और हमारे शरीर में उतर जाते हैं? धीरे-धीरे यह कैंसर, हार्मोनल गड़बड़ी और जाने कितनी बीमारियों का कारण बन जाते हैं।
सबसे दुख की बात तो यह है कि सडक़ पर फेंके गए प्लास्टिक के पत्तल, दोने और गिलास में बचा खाना देख गाय, बकरी, कुत्ते और कई पशु इन्हें खा लेते हैं। खाना तो पेट में चला जाता है, लेकिन प्लास्टिक उनके अंदर फंसकर रह जाता है। न पचता है, न निकलता है। कई बार डॉक्टरों ने गायों के पेट से 25-30 किलो प्लास्टिक निकाला है।
यही वजह है कि पहले के लोग प्लास्टिक पर निर्भर नहीं थे। प्राचीन समय में लोग खाखरे (पलाश) व अन्य पत्तों से पत्तल बनाने का काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे गांव के और लोग भी इसमें जुट गए। पहले हाथ से तिनकों से बनाते थे, अब पत्तल दोने मशीनों से बनने लगे हैं। मशीन से बने पत्तल और दोने मजबूत, टिकाऊ और डिजाइनदार होते हैं। ये बदलाव युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा साधन बन सकते हैं, क्योंकि लागत कम और मांग ज्यादा है।
पहले गांव-शहर में बड़े-बड़े भोज, मेलों और त्योहारों में पत्तल और दोने ही चलते थे। खाखरे के पत्तों से बनी ये थालियां न सिर्फ सुंदर होती थीं, बल्कि मिट्टी में सडक़र फिर से धरती का हिस्सा बन जाती थीं। इनमें परोसा खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता और कई बार इन पत्तों में प्राकृतिक औषधीय गुण भी होते हैं।
ग्रामीण इलाकों में पत्तल बनाना आज भी कई परिवारों की रोजी-रोटी है। महिलाएं घर बैठे इस काम में हाथ बंटाती हैं, जिससे उनकी भी आमदनी होती है। आज पत्तल की मांग सिर्फ गांव में नहीं, बल्कि शहरों में भी है। हम यदि खाखरे से बनी पत्तलों को उपयोग में लेना शुरू करें तो प्लास्टिक से होने वाली घातक बीमारियों से निजात मिलने के साथ-साथ पत्तल दोनें की प्राकृतिक संस्कृति पुन: जीवंत होगी।
हम सबका कर्तव्य है कि अपनी शादी, जन्मदिन, त्योहार या सामूहिक भोज में प्लास्टिक के बजाय पत्तल का इस्तेमाल करें। दुकानदारों और होटल वालों को भी पत्तल अपनाने के लिए प्रेरित करें। पत्तल बनाने वाले कारीगरों से सीधे खरीदकर उन्हें आर्थिक सहयोग दें और बच्चों को बचपन से ही प्रकृति के अनुकूल आदतें सिखाएं।
सरकार अगर चाहे तो पत्तल निर्माण के लिए उपयोग में आने वाली मशीनों पर अधिक सब्सिडी दें, छोटे उद्योग पंजीकरण आसान करे और प्लास्टिक पर सख्त रोक के कानून की पालना कड़ाई से सुनिश्चित कराएं। सरकार आज तक प्लास्टिक के क्रय-विक्रय एवं उपयोग करने वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाई है। अगर समाज और सरकार दोनों मिलकर आगे बढ़ें तो प्लास्टिक को आसानी से मात दी जा सकती है। पत्तल का इस्तेमाल करना सिर्फ एक पुरानी परंपरा को जिंदा रखना नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण, स्वास्थ्य, पशुओं और हमारे गांवों की तरक्की के लिए एक मजबूत कदम है। आज ही फैसला लीजिए, प्लास्टिक छोडि़ए, पत्तल अपनाइए। यह आने वाली पीढिय़ों के लिए यह सबसे कीमती तोहफा होगा।