4 अगस्त 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

संपादकीय : न्यायपालिका पर भरोसा लोकतंत्र का अहम आधार

न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर उठते सवालों के बीच सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी संपत्ति को सार्वजनिक रूप से घोषित करने पर सहमति जताई है। न्याय के प्रति जनता के भरोसे को और मजबूत करने के लिहाज से इस फैसले को सही कदम कहा जाना चाहिए। यह कदम दिल्ली हाईकोर्ट के जज […]

जयपुर

arun Kumar

Apr 04, 2025

न्यायपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता पर उठते सवालों के बीच सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों ने अपनी संपत्ति को सार्वजनिक रूप से घोषित करने पर सहमति जताई है। न्याय के प्रति जनता के भरोसे को और मजबूत करने के लिहाज से इस फैसले को सही कदम कहा जाना चाहिए। यह कदम दिल्ली हाईकोर्ट के जज के रूप में पदस्थापित जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने का मामला सामने आने के बाद उठाया गया है। इस घटना के बाद न केवल न्यायपालिका की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे थे बल्कि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव की मांग भी जोर पकड़ रही थी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा का निर्णय न्यायपालिका में पारदर्शिता कायम करने वाला होगा।
जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने की मांग समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर उठाई जाती रही है। इस मांग के पीछे बड़ा तर्क भी यही दिया जाता रहा है कि जब तक जजों की संपत्ति सार्वजनिक नहीं होगी, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के आरोपों पर ठोस कार्रवाई संभव नहीं हो सकेगी। वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके तहत न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का विवरण मुख्य न्यायाधीश को प्रस्तुत करना आवश्यक था। हालांकि 2009 में यह निर्णय भी किया गया था कि न्यायाधीश स्वेच्छा से अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक कर सकते हैं पर यह अनिवार्य नहीं है। गत वर्ष ही सरकार ने भी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के लिए अपनी संपत्ति की वार्षिक घोषणा को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव रखा था। इसका भी मकसद न्यायपालिका में जनता के भरोसे को मजबूत करना था। भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों में न्यायाधीश अपनी संपत्तियों की घोषणा करते हैं। कई देशों में यह स्वैच्छिक है तो कुछ जगह अनिवार्य भी है। न्यायपालिका ही फरियाद का अंतिम पड़ाव कहा जाता है। ऐसे में न केवल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बल्कि न्यायपालिका के सभी स्तरों पर न्यायाधीश अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करें तो उसका संदेश अच्छा जाएगा। अब तक का अनुभव बताता है कि उच्च न्यायालयों के स्तर पर भी जजों में संपत्ति को सार्वजनिक करने की प्रवृत्ति काफी कम है। मार्च 2025 तक, उच्च न्यायालयों के कुल 763 में से सिर्फ 49 न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की है। न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए अभी इस दिशा में और प्रयासों की जरूरत है।
न्यायपालिका पर जनता का भरोसा लोकतंत्र का अहम आधार है। न्यायिक प्रणाली में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रहे इसके लिए जरूरत इस बात की है कि निचली अदालतों तक संपत्ति सार्वजनिक करने जैसे कदम उठए जाएं। ताकि न्यायपालिका की पारदर्शिता को लेकर उठने वाले संदेह दूर हो सकें।