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संपादकीय : राजनीति में अपराधियों को रोकना नैतिक दायित्व भी

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में राजनीति के अपराधीकरण को रोकना आज भी बड़ी चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले राजनेताओं को चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की याचिका पर विचार कर रहा है। केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अपराधी राजनेताओं को […]

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में राजनीति के अपराधीकरण को रोकना आज भी बड़ी चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले राजनेताओं को चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की याचिका पर विचार कर रहा है। केंद्र सरकार ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अपराधी राजनेताओं को हमेशा के लिए चुनाव लडऩे से रोकना अनुचित होगा, क्योंकि यह अपराध के लिए ज्यादा कठोर सजा देने और व्यक्ति में सुधार की संभावना को खत्म करने जैसा होगा। केंद्र सरकार का तर्क है कि यदि ऐसे किसी कानूनी प्रावधान की आवश्यकता है भी तो उस पर फैसले का अधिकार संवैधानिक रूप से सिर्फ विधायिका को ही है, न्यायपालिका को नहीं। वहीं अदालत का तर्क है कि यदि आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग संसद या विधानसभाओं में पहुंचते हैं तो अपने खिलाफ कानून बनाने में उनके हितों का टकराव होगा। इस यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजने का काम सर्वोच्च अदालत को ही करना है लेकिन, अपराधियों को संसद या विधानसभाओं में पहुंचने से रोकना एक ऐसा दायित्व है जिसे सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों और कानूनी पेचीदगियों के हिसाब से ही नहीं देखना चाहिए। केंद्र सरकार का तर्क कानूनी दृष्टिकोण से समझा जा सकता है, लेकिन क्या यह नैतिक रूप से भी उचित है?
निर्वाचित प्रतिनिधियों से उच्च नैतिक मूल्यों की पालना और जवाबदेही की अपेक्षा की जाती है। गंभीर आपराधिक आरोप सिद्ध होने पर किसी को भी सार्वजनिक पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं होना चाहिए। कई सरकारी नौकरियों और सेवाओं में गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए जाने के बाद कार्मिक को बर्खास्त किया जा सकता है। फिर, राजनेताओं को छूट क्यों दी जाए? इस गंभीर प्रश्न पर नीति-निर्माताओं और न्यायपालिका को विचार करना चाहिए। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो और विभिन्न चुनावी विश्लेषणों के अनुसार, भारतीय संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे जनप्रतिनिधि हैं जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स की रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान लोकसभा के लगभग 43 फीसदी सांसदों पर आपराधिक मुकदमे हैं, जिनमें हत्या, बलात्कार, अपहरण और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। राजनीति में अपराधियों की भागीदारी को रोकने के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाए जाते तो यह लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर सकता है। अपराधियों के सत्ता में बने रहने से प्रशासन में पारदर्शिता और निष्पक्षता प्रभावित होती है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास कम होता है।