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सम्पादकीय : तकनीकी शिक्षा में बेटियों की बढ़ती भागीदारी सुखद

जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी के अनुसार इन संस्थानों में फीमेल-सुपरन्यूमरेरी सीटों की शुरुआत ने इस बदलाव को गति दी है।

जयपुर

arun Kumar

Jul 18, 2025

यह सुखद संकेत ही कहा जाएगा कि आइआइटी,एनआइटी, ट्रिपलआइटी जैसे संस्थानों के दाखिलों में बेटियों की भागीदारी बढऩे लगी है। भारतीय समाज में लंबे समय तक इंजीनियरिंग को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह धारणा तेजी से बदल रही है। जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी के अनुसार इन संस्थानों में फीमेल-सुपरन्यूमरेरी सीटों की शुरुआत ने इस बदलाव को गति दी है। इन प्रयासों ने न केवल इंजीनियरिंग में लैंगिक असंतुलन को कम किया है, बल्कि बेटियों को तकनीकी शिक्षा और करियर में नई उंचाइयां छूने का अवसर भी प्रदान किया है। यह बदलाव सामाजिक, वैज्ञानिक और नीतिगत स्तर पर कई कारकों का परिणाम है, जिसने नारी शक्ति को एक नया आयाम दिया है। आइआइटी में महिला छात्राओं की भागीदारी 2018 के 8 फीसदी से बढकर 2024 में 20 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए) के अनुसार, इंजीनियरिंग में दाखिला लेने वाली छात्राओं की संख्या में 2015 से 2025 तक 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि लड़कियां अब न केवल इंजीनियरिंग को चुन रही हैं, बल्कि इसमें उत्कृष्टता भी हासिल कर रही हैं। वैज्ञानिक शोध भी इस बदलाव के पीछे की वजहों को समझने में मदद करते हैं। न्यूरोसाइंस और जेनेटिक्स के अध्ययनों के अनुसार, महिलाओं में दो एक्स क्रोमोसोम्स उनकी मानसिक और तनाव प्रबंधन की क्षमता को बढ़ाते हैं। यह उन्हें चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सकारात्मक रहने में मदद करता है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि महिलाएं मल्टीटास्किंग और रचनात्मक सोच में पुरुषों की तुलना में अधिक कुशल हो सकती हैं। ये गुण इंजीनियरिंग जैसे जटिल और नवाचार-प्रधान क्षेत्र में उनकी सफलता का आधार बन रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं ने भी बेटियों को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। परिवारों की सोच में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। पहले जहां बेटियों को इंजीनियरिंग या तकनीकी क्षेत्र में भेजने को लेकर हिचक थी, वहीं अब माता-पिता अपनी बेटियों को इन क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
यह बदलाव केवल नीतियों और वैज्ञानिक कारणों तक सीमित नहीं है। अब लड़किया इंजीनियरिंग ही नहीं सेना, पुलिस, मेडिकल, मैनेजमेंट और चार्टर्ड अकाउंटेंसी जैसे क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही हैं। इनके ब ावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को अभी भी उच्च शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण तक पहुंच में बाधाएं आती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों को और तेज करना होगा। साथ ही, निजी क्षेत्र और गैर-सरकारी संगठनों को भी इस दिशा में और सक्रिय भूमिका निभानी होगी।