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अर्थव्यवस्था, संस्कृति और प्रकृति का संगम है फार्म टूरिज्म

सोनम लववंशी

जयपुर

Neeru Yadav

Aug 03, 2025

भागदौड़, शोर और प्रदूषण से भरे शहरी जीवन में जब इंसान का मन थकता है, तब उसे सुकून खेतों की हरियाली, मिट्टी की सौंधी खुशबू और देहात की सरलता में मिलता है। इसी तलाश ने जन्म दिया फार्म टूरिज्म को, जिसे आज वैश्विक पर्यटन उद्योग में एक नवाचार के रूप में देखा जा रहा है। यह केवल पर्यटकों की किसी ग्रामीण स्थल पर यात्रा नहीं, बल्कि कृषि, संस्कृति, प्रकृति और मानव संबंधों के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है। फार्म टूरिज्म आधुनिक अर्थव्यवस्था में एक ऐसा आयाम है, जो पर्यावरणीय संतुलन, ग्रामीण आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की संभावनाओं से परिपूर्ण है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो फार्म टूरिज्म अब एक पूर्ण विकसित आर्थिक क्षेत्र बन चुका है। यूरोप के इटली, फ्रांस, स्पेन, स्विट्जरलैंड जैसे देशों में इसे ‘एग्रीटूरिज्म’ के नाम से जाना जाता है और सरकारें इसे रणनीतिक रूप से बढ़ावा देती हैं। इटली में करीब 25,000 से अधिक फार्मस्टे हैं, जो हर साल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। वहां के किसान अब केवल गेहूं या अंगूर की फसल ही नहीं उगाते, बल्कि अपने खेतों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर चुके हैं, जहां पर्यटक स्थानीय जीवनशैली, जैविक भोजन, वाइन चखने और पशुपालन जैसे अनुभवों में भाग लेते हैं। इसी तरह अमरीका में फार्म टूरिज्म का वार्षिक योगदान 1.2 बिलियन डॉलर से अधिक है, जहां इसे ‘एग्रीटेनमेंट’ का नाम देकर पारिवारिक, शैक्षणिक और अनुभवात्मक पर्यटन का रूप दिया गया है। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में तो फार्म टूरिज्म राष्ट्रीय स्तर की ब्रांडिंग और निर्यातयोग्य अनुभव बन चुका है।
इस पूरी अवधारणा का मूल सिद्धांत यह है कि शहरी और ग्रामीण समुदायों के बीच जो दूरी बनी है, उसे अनुभव आधारित संवाद से जोड़ा जाए। फार्म टूरिज्म सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सीखने, समझने और जुडऩे की प्रक्रिया है। यह टिकाऊ पर्यटन के साथ-साथ किसानों के लिए वैकल्पिक आमदनी का स्रोत है, जिसमें मौसमी फसल की अनिश्चितता और बाजार की अस्थिरता से थोड़ा अलग एक स्थायी आधार बनता है। भारत के संदर्भ में देखें तो फार्म टूरिज्म की अवधारणा नई नहीं है, पर इसे योजनाबद्ध, रणनीतिक और पेशेवर रूप देने की आवश्यकता अब गंभीर हो गई है। भारत की कृषि प्रधान पहचान, विविधता से भरी ग्रामीण संस्कृतियां और प्राकृतिक संपदा इसे फार्म टूरिज्म का स्वाभाविक केंद्र बना सकते हैं। महाराष्ट्र के बारामती, केरल के वायनाड, पंजाब के मोगा और संगरूर, उत्तराखंड के पिथौरागढ़, राजस्थान के शेखावाटी और तमिलनाडु के कोयंबटूर जैसे क्षेत्रों में फार्म टूरिज्म के कई सफल प्रयोग देखने को मिलते हैं। यहां पर्यटक केवल खेतों में घूमने नहीं आते, फसल बोने, दूध दुहने, बैलगाड़ी चलाने, देसी खाना पकाने और लोकगीतों पर झूमने जैसे अनुभवों में हिस्सा लेते हैं।
भारत में इस क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व लगातार बढ़ रहा है। खेत अब केवल अन्न पैदा करने की जगह नहीं रही यह आय, शिक्षा और नवाचार के केंद्र बन रहे हैं। विशेष रूप से ग्रामीण युवाओं के लिए फार्म टूरिज्म ने रोजगार और उद्यमिता की नई राह खोली है। पारंपरिक खेती की जगह अब किसान अपने खेतों को ‘होमस्टे’, ‘ऑर्गेनिक फार्म रिट्रीट’, ‘एग्री क्लासरूम’ या ‘इको विलेज’ में बदल रहे हैं। भारत सरकार और कई राज्य सरकारें भी इस दिशा में सक्रिय हैं। महाराष्ट्र ने ‘फार्म टूरिज्म डेवलपमेंट पॉलिसी’ के तहत किसानों को पर्यटन-संबंधी आधारभूत संरचनाएं खड़ी करने के लिए प्रशिक्षण, सब्सिडी और लाइसेंसिंग सुविधा दी है। केरल ने ‘ग्रीन टूरिज्म’ मॉडल के तहत अपने पारंपरिक कृषि अनुभव को पर्यटन से जोडऩे का अभिनव प्रयास किया है। राजस्थान ने अपनी हेरिटेज फाम्र्स और मरुस्थलीय खेती को एक आकर्षक सांस्कृतिक अनुभव के रूप में प्रचारित किया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार की ग्रामीण पर्यटन योजना, एक जिला-एक उत्पाद योजना और डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों ने ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल पहुंच, मार्केटिंग और लॉजिस्टिक्स की दृष्टि से सहायक भूमिका निभाई है। परंतु, इन सफलताओं के बावजूद चुनौतियां भी कम नहीं हैं। भारत में फार्म टूरिज्म की संभावनाएं जितनी अधिक हैं, व्यावहारिक स्तर पर उन्हें मूर्त रूप देने में अभी काफी काम करना बाकी है। बुनियादी ढांचे की कमी, प्रशिक्षण की असमानता, डिजिटल साक्षरता का अभाव, और किसानों में उद्यमशीलता की जानकारी का अभाव- ये सब बड़ी बाधाएं हैं। इसके अलावा पर्यटक सुविधाओं की गुणवत्ता, स्वच्छता, सुरक्षा, और स्थिर इंटरनेट जैसी बुनियादी आवश्यकताएं ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी असंतुलित रूप से उपलब्ध हैं।
एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इस क्षेत्र में पारदर्शी नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। भारत में कृषि और पर्यटन दोनों ही विषय राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं, अत: विभिन्न राज्यों के प्रयास असमान और अलग-अलग स्तर पर चल रहे हैं। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वित प्रयास की आवश्यकता है, जिसमें किसानों को प्रशिक्षित करने, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने और निवेश को आकर्षित करने की समेकित नीति हो। साथ ही विश्वविद्यालयों और कृषि संस्थानों में फार्म टूरिज्म को एक विषय के रूप में पढ़ाना और प्रशिक्षित करना समय की मांग है। आगामी वर्षों की ओर देखें तो फार्म टूरिज्म भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। जलवायु परिवर्तन, खेती की बढ़ती लागत और कृषि से पलायन की चुनौतियों के बीच फार्म टूरिज्म एक ऐसा विकल्प प्रस्तुत करता है जो सतत विकास, सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक विविधीकरण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। जैसे-जैसे डिजिटल उपकरणों की पहुंच बढ़ेगी, किसानों को अपनी सेवाएं सीधे पर्यटकों तक पहुंचाने में आसानी होगी। स्टार्टअप, सोशल मीडिया, ट्रैवल ब्लॉग्स और ऑनलाइन फार्म बुकिंग प्लेटफॉर्म अब इस बदलाव को गति दे रहे हैं। भविष्य में फार्म टूरिज्म एक ‘ग्राम आधारित पर्यटन नेटवर्क’ का रूप ले सकता है, जिसमें हर गांव एक पर्यटन केंद्र होगा, हर खेत एक अनुभवशाला और हर किसान एक उद्यमी। यह केवल आर्थिक ही नहीं, सामाजिक परिवर्तन की भी चाबी हो सकता है जहां ग्रामीण और शहरी समाज के बीच आपसी समझ, सहभागिता और आत्मीयता का नया अध्याय शुरू होगा। फार्म टूरिज्म आज सिर्फ एक विकल्प नहीं है। यह विकास और प्रकृति के बीच संतुलन की नई भाषा है। ये मिट्टी से उपजा हुआ वह सपना है, जो न केवल किसानों को सशक्त करता है, बल्कि पर्यटकों को भी अपनी जड़ों से जोड़ता है। जब खेत केवल फसल नहीं, अनुभव, रोजगार, संस्कृति और संवेदना भी देने लगें तब हम कह सकते हैं कि हमने कृषि को केवल उत्पाद नहीं, पहचान और भविष्य बना लिया है। यही वह भारत होगा, जो अपने गांवों की आत्मा से विश्व को जोड़ सकेगा।