-संसद में घुसे आंदोलनकारी
काठमांडू. नेपाल में सोशल मीडिया बैन करने से उठी ङ्क्षचगारी ने ङ्क्षहसा का रूप ले लिया। सोमवार सुबह सडक़ों पर उतरे हजारों की संख्या में युवाओं ने बैरिकेड्स तोडकऱ संसद परिसर में धावा बोल दिया और संसद भवन की इमारत के पास आग लगाकर तोडफ़ोड़ कर डाली। पुलिस ने वाटर कैनन और आंसू गैसे के गोले छोडकऱ उग्र भीड़ आंदोलनकारियों को काबू करने का प्रयास किया। पुलिस व प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हिंसक हो गया, जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई और 350 से ज्यादा घायल हैं। हालांकि मरने वालों की आधिकारिक संख्या 19 बताई गई है। युवाओं के आक्रोश को देखते हुए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास की सुरक्षा बढ़ा दी गई। काठमांडू में कफ्र्यू लगाकर सीमाएं सील कर दी गई और सेना को तैनात करना पड़ा। बिना नेतृत्व के इस आंदोलन को ‘जेन जेड प्रोटेस्ट’ नाम दिया गया है, क्योंकि इसकी अगुवाई 18 से 28 वर्ष के युवा और छात्र कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन तब शुरू हुआ जब केपी शर्मा ओली सरकार ने पिछले सप्ताह 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को बैन कर दिया। इस बीच आपात बैठक के बाद देर रात नेपाल के सूचना मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने सोशल मीडिया साइटों से बैन हटाने की घोषणा कर दी। पूर्व पीएम पुष्प दहल प्रचंड ने कहा, भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर रोक के खिलाफ युवाओं का प्रदर्शन स्वाभाविक है। इस बीच भारत सरकार हालात पर नजर रखे हुए है। भारत-नेपाल बॉर्डर पर चौकसी बढ़ा दी गई है। आंदोलनकारियों का कहना था कि सोशल मीडिया बैन के जरिए सरकार भ्रष्टाचार और राजतंत्र के समर्थन में हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाना चाहती है।
ऐसे चला घटनाक्रम
3 सितंबर: स्थानीय कानूनों का पालन नहीं करने पर सरकार ने फेसबुक, एक्स सहित कई सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स बैन किए।
3 सितंबर: युवाओं ने अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश बताया। काठमांडू की यूनिवर्सिटी में प्रदर्शन किया।
4-5 सितंबर: युवा आंदोलन राजधानी काठमांडू से बाहर पोखरा, विराटनगर, चितवन जैसे शहरों तक पहुंचा। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसे मुद्दे जोड़े।
6 सितंबर: संसद भवन और सरकारी कार्यालयों के बाहर भीड़ जमा हुई तो पुलिस ने आंसू गैस-वाटर कैनन का इस्तेमाल किया। कई जगह प्रदर्शनकारियों में झड़पें।
7 सितंबर: युवाओं ने पथराव किया। पुलिस ने रबर बुलेट चलाई तो आंदोलन उग्र हो गया।
8 सितंबर: संसद भवन के पास बड़ा प्रदर्शन। पुलिस की फायङ्क्षरग में कई मौतें।
सरकार ने क्यों लगाया प्रतिबंध
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को 7 दिन में रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया था। ऐसा नहीं करने पर 3 सितंबर को नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट््यूब समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर बैन लगा दिया। टिकटॉक, वाइबर के रजिस्ट्रेशन करवाने से इन्हें बैन नहीं किया गया।
कंपनियों ने क्यों नहीं मानी शर्तें
2024 में आए नए कानून के मुताबिक सभी सोशल मीडिया कंपनियों को नेपाल में स्थानीय कार्यालय स्थापित करना जरूरी है और टैक्सपेयर के रूप में पंजीकरण करना अनिवार्य था। डेटा प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए कंपनियां इन शर्तों पर सहमत नहीं हुई। भारत या बड़े यूरोपीय देशों में कंपनियां स्थानीय प्रतिनिधि रख लेती हैं, क्योंकि वहां यूजर ज्यादा हैं, लेकिन नेपाल का यूजर बेस छोटा है, इसलिए कंपनियों को यह बेहद खर्चीला लगा।
सरकार का तर्क
बैन लगाने के पीछे सरकार का तर्क है, बिना रजिस्ट्रेशन ये प्लेटफॉम्र्स फेक आइडी, हेट स्पीच, उकसावे वाले कंटेंट, साइबर क्राइम और गलत सूचनाएं फैलाने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं।
आंदोलनकारियों का मत
आंदोलनकारियों ने सोशल मीडिया बैन को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला माना। लोगों का कहना है कि यह प्रतिबंध भ्रष्टाचार और राजशाही समर्थकों के प्रदर्शनों व सरकार विरोधी प्रदर्शनों को दबाने का प्रयास है, जो हाल के महीनों में बढ़े हैं।
इन आंदोलनों की झलक :
-2019 में हांगकांग के प्रॉ डेमोक्रेसी प्रोटेस्ट की तरह इस आंदोलन का कोई चेहरा नहीं है।
-2010-11 के अरब स्प्रिंग की तरह युवा असंतोष से प्रेरित।
-2011 के अन्ना आंदोलन की तरह भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की मांग से जुड़ा है।
छात्रों ने कहा, पढ़ाई प्रभावित हो रही है
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में एक हजारों प्रदर्शनकारी नजर आ रहे हैं। एक छात्र के हाथ में बैनर पर लिखा था, भूकंप की जरूरत नहीं है, नेपाल रोज भ्रष्टाचार से हिलता है। एक छात्रा बीनू केसी ने न्यूज एजेंसी को बताया, हम नेपाल में भ्रष्टाचार खत्म होते देखना चाहते हैं। इसके अलावा अन्य युवाओं का कहना था कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध से उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई है। ऑनलाइन क्लासेज नहीं ले पा रहे।
Published on:
09 Sept 2025 02:09 am