दमोह. जिले में एचआइवी पीडि़तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ताजा आंकड़ों पर नजर डाले तो ५५० से ज्यादा मरीज पंजीकृत हैं। एचआइवी के मरीजों को किडनी रोग जैसी बीमारी भी परेशान कर रही है। परेशानी की बात यह है कि इन मरीजों को जिला अस्पताल में इलाज नहीं मिल रहा है। एचआइवी की अलग से यूनिट नहीं है। इधर, डायलिसिस के लिए भी प्रबंधन ने कोई व्यवस्था नहीं की है। ऐसी स्थिति में यदि एचआइवी के साथ किडनी रोग से ग्रसित मरीजों बाहर ही इलाज कराना पड़ रहा है।
जिला अस्पताल में डायलिसिस यूनिट के पास में ही एक अलग कक्ष होना चाहिए, जहां ऐसे मरीजों की डायलिसिस हो सके। बकायदा प्रबंधन को दो मशीनें अलग से रखवानी चाहिए, ताकि जरूरत पडऩे पर डायलिसिस हो सके। वहीं, दूसरी तरफ अन्य सामान्य मरीजों में संक्रमण का खतरा न बने।
-कैंसर का भी खतरा, पर नहीं यहां इलाज
एचआइवी पीडि़त मरीजों को सबसे ज्यादा कैंसर रोग का खतरा रहता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि एचआईवी प्रतिरक्षा प्रणाली पर हमला करता है, जो शरीर को संक्रमण और बीमारी से बचाता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर जैसी बीमारियों से लडऩे में कम सक्षम होती है। एचआईवी से पीडि़त लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली अक्सर कमज़ोर होती है, जिसका मतलब है कि उन्हें कैंसर होने की आशंका ज्यादा होती है। पर जिला अस्पताल में कैंसर का भी इलाज नहीं है। आम मरीजों की तरह इन्हें भी बाहर इलाज कराने जाना पड़ रहा है।
-५४ डायलिसिस हो रहे प्रतिदिन
जिला अस्पताल में डायलिसिस सेंटर में चार शिफ्टों में डायलिसिस होना बताई जा रही है। एक दिन में ५४ मरीजों की डायलिसिस हो रही है। यहां पर डायलिसिस के लिए ६ मशीनें चालू हैं। २ मशीने बंद है, पर एचआइवी मरीजों की यहां पर अलग से कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
-ढाई सौ से अधिक जबलपुर में इलाजरत
जिले में एचआइवी पीडि़त मरीज दो जगहों पर इलाज करा रहे हैं। सागर मेडिकल कॉलेज में ३०० के आसपास मरीज पंजीकृत हैं, जबकि जबलपुर में इलाज कराने वाले एचआइवी पीडि़तों की संख्या २५० के आसपास है। इसकी पुष्टी आइसीटीसी सेंटर से हुई है।
वर्शन
हमने शासन को पत्र लिखा है, जिसमें अलग से एचआइवी सेंटर बनाने और डायलिसिस के लिए दो मशीनों की मांग की है। शासन ने भी नई गाइड लाइन के तहत प्रपोजल बनाकर भेजने को कहा है।
डॉ. सुरेंद्र विक्रम सिंह, प्रबंधक जिला अस्पताल
Published on:
10 Jul 2025 11:32 am