Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने नगर निगम के संविदा शिक्षकों के हक में बड़ा फैसला सुनाया है। इससे दिल्ली के करीब 2500 शिक्षकों को अब नियमित शिक्षकों की तरह मोटी तनख्वाह मिलने का रास्ता साफ हो गया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इन शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन दिया जाए। यह फैसला समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर आधारित है, जो भारतीय संविधान के मूलभूत अधिकारों में से एक है। दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की डिवीजन बेंच ने यह स्पष्ट किया कि चाहे कर्मचारी नियमित हो या संविदा पर, अगर वह समान कार्य कर रहा है तो उसे समान वेतन मिलना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अलग-अलग वेतनमान देना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह व्यक्ति की गरिमा का भी अपमान है।
अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक निर्णय ‘जगजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य’ का भी उल्लेख किया। उस फैसले में भी यह स्पष्ट किया गया था कि समान कार्य करने वाले दो व्यक्तियों के बीच वेतन के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने इसी आधार पर एमसीडी की याचिका को खारिज कर दिया और कैट (केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) के आदेश को बरकरार रखा।
यह मामला शुरुआत में कॉन्ट्रैक्ट टीचर शहनाज परवीन व अन्य शिक्षकों द्वारा कैट में दाखिल किया गया था। उन्होंने वकील अनुज अग्रवाल के माध्यम से यह मांग रखी थी कि उन्हें सातवें वेतन आयोग के अनुसार न्यूनतम वेतनमान दिया जाए, जैसा कि नियमित शिक्षकों को मिलता है। कैट ने उनकी याचिका स्वीकार कर ली थी और आदेश दिया था कि सभी कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स को एक जनवरी 2016 से सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन और सभी लाभ दिए जाएं। हालांकि एमसीडी ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि निगम संविदा शिक्षकों को समान कार्य करने के बावजूद समान वेतन नहीं दे रहा, जो कि गलत है।
कैट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि यदि तीन महीने के भीतर इन शिक्षकों को बकाया वेतन और अन्य लाभ नहीं दिए गए, तो एमसीडी को उस राशि पर ब्याज सहित भुगतान करना होगा। हाईकोर्ट ने भी इस निर्देश को बरकरार रखा है, जिसका मतलब है कि अब निगम को न केवल संशोधित वेतन देना होगा, बल्कि देरी होने पर ब्याज सहित बकाया राशि भी अदा करनी पड़ेगी।
इस फैसले से एमसीडी में कार्यरत करीब 2,500 संविदा शिक्षकों को सीधा लाभ मिलेगा। वर्षों से वे कम वेतनमान पर कार्य कर रहे थे, जबकि उनका कार्यभार और जिम्मेदारियां नियमित शिक्षकों के समान ही थीं। अब हाईकोर्ट के इस निर्णय से उन्हें उनका हक मिलेगा और आर्थिक रूप से भी बड़ी राहत मिलेगी। यह फैसला ना केवल दिल्ली बल्कि देशभर के अन्य संविदा कर्मचारियों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जो समान कार्य के बावजूद वेतन भेदभाव का सामना कर रहे हैं।
Published on:
06 Aug 2025 12:17 pm