
सुप्रीम कोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)
देश के सर्वोच्च न्यायालय में एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने के बाद बरी हुए तीन निर्दोषों ने मुआवजे की मांग करते हुए याचिका दायर की है। अब सुप्रीम कोर्ट इस सवाल का परीक्षण करेगा कि क्या मृत्युदंड की सजा सुनाए गए व्यक्ति अंतत: सुप्रीम कोर्ट से बरी होने पर अपनी जेल में बिताई सजा को अवैध हिरासत बताकर सरकार से मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं। मामलों की सुनवाई जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच कर रही है। बेंच ने ऐसी तीन रिट याचिकाओं पर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों राज्यों की सरकारों से यह अनुरोध भी किया है कि देश के अटॉर्नी जनरल (एजी) आर.वेंकटरमणी या सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मुआवजे के मुद्दे पर अदालत की सहायता करें। बता दें कि, इन तीनों याचिकाकर्ताओं में से दो को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामलों में मुआवजा दिया जाना चाहिए। वहीं तीसरे याचिकाकर्ता को संदेह के लाभ में बरी किया गया था।
मुख्य याचिकाकर्ता महाराष्ट्र के 41 वर्षीय रामकीरत मुनिलाल गौड़ को ट्रायल कोर्ट ने हत्या व बलात्कार के मामले में दोषी ठहराते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। उसने कुल 12 साल जेल में काटे जिसमें फांसी की सजा प्राप्त कैदी के रूप में छह साल शामिल हैं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी करते हुए कहा था कि उसकी दोषसिद्धि त्रुटिपूर्ण और दूषित जांच पर आधारित थी। याचिकाकर्ता को 12 साल जेल में रहकर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन सहना पड़ा और झूठे आरोप लगाकर अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया। ऐसे मामलों में सरकार को उसे उचित मुआवजा देना चाहिए।
दूसरे याचिकाकर्ता तमिलनाडु के कट्टावेल्लई और उत्तर प्रदेश के संजय को भी हत्या व बलात्कार के मामले में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी जिन्हें बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था। कट्टावेल्लई के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गलत तरीके से कैद करने के मामलों में मुआवजा देने के लिए एक कानून होना चाहिए।
Published on:
29 Oct 2025 08:22 am
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