सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून के दायरे में लाने की मांग की गई थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस याचिका पर टिप्पणी देते हुए कहा कि, यह मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। हम इसमें दखल कैसे दे सकते हैं। यह नीति से जुड़ा हुआ मामला है।
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने कोर्ट से कहा कि, वह किसी नए कानून की मांग नहीं कर रही हैं। बल्कि, वह केवल यह व्याख्या चाहती हैं कि राजनीतिक दलों को भी 'कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013' (जिसे आमतौर पर 'POSH Act' कहा जाता है) के दायरे में लाया जाए।
गुप्ता ने कहा कि, केरल उच्च न्यायालय के एक फैसले में कहा गया था कि किसी राजनीतिक दल को इस अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति स्थापित करने की कानूनी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसके सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी का संबंध नहीं होता है। इस पर गुप्ता ने तर्क दिया कि, इस मामले को पूरी तरह से विधायिका के दायरे में नहीं माना जाना चाहिए।
इस पर सीजेआई की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुप्ता को सलाह दी कि वह केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर कर सकती है। इसके बाद गुप्ता ने अपनी जनहित याचिका वापस लेने का फैसला लिया और कोर्ट ने उसे इसकी अनुमति दे दी। कोर्ट ने कहा कि, वह कानून के अनुसार उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को वापस ले लिया और इस मामले को समाप्त कर दिया।
Published on:
01 Aug 2025 01:33 pm