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Summons on WhatsApp: क्या पुलिस व्हाट्सएप पर भेज सकती है समन? जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

Summons on WhatsApp: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस जांच के लिए समन भौतिक रूप से ही दिया जाए। SC ने कहा कि हम इस बात से सहमत नहीं है कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 35 के तहत व्हाट्सएप या अन्य माध्यों से समन भेजना एक वैध तरीका है।

Supreme Court
Supreme Court(Photo-Court Official)

Summons on WhatsApp: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हरियाणा सरकार (Haryana Government) की उस याचिका को सिरे खारिज कर दिया, जिसमें राज्य सरकार ने अनुमति मांगी थी कि पुलिस जांच के लिए भेजा जाने वाला समन व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए भेज सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आवेदन को खारिज करते हुए निर्देश दिया कि पुलिस जांच के लिए समन भौतिक रूप से ही दिया जाए।

मामले की सुनवाई करते हुए MM सुंदरेशन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने कहा कि कोर्ट इस बात से सहमत नहीं है कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 35 के तहत व्हाट्सएप या अन्य माध्यों से समन भेजना एक वैध तरीका है। उन्होंने कहा कि कानून निर्माताओं ने इस प्रक्रिया को जानबूझकर शामिल नहीं किया है, उनकी मंशा स्पष्ट थी कि समन को भौतिक रूप में ही देना उचित है।

धारा 35 के तहत इलेक्ट्रॉनिक सेवा का उल्लेख नहीं

कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, 'नए आपराधिक कानून BNSS में नोटिस की इलेक्ट्रॉनिक सेवा का प्रावधान जरूर है, लेकिन इसका इस्तेमाल विषम स्थितियों के लिए है'। कोर्ट ने कहा कि चूंकि धारा 35 के तहत इलेक्ट्रॉनिक सेवा का उल्लेख नहीं है। इसलिए इस मामले में सहारा नहीं लिया जा सकता है।

न्यायमूर्ति MM सुंदरेशन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 35 के तहत नोटिस के अनुसार गैर-हाजिरी गिरफ्तारी का आधार हो सकती है, इसलिए न्यायालय ने कहा कि उसे ऐसी व्याख्या अपनानी होगी, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हित में हो। बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस की तामील इस तरह से की जानी चाहिए, जिससे इस मूल अधिकार की रक्षा हो सके, क्योंकि नोटिस का अनुपालन न करने से किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भारी प्रभाव पड़ सकता है।

सरकार ने दिया ये तर्क

सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार ने तर्क दिया था कि BNSS के तहत अदालती नोटिस जारी करने और गवाहों को बुलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधन निर्धारित किए गए थे। यह धारा 35 पर भी लागू होना चाहिए। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया था कि इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्ति का सिर्फ जांच में भाग लेना है न कि गिरफ्तार होना।