New BJP President: भाजपा ने आधे से ज्यादा राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बना लिए हैं, फिर भी राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों नहीं चुन पा रही है? यह कोई बड़ा राष्ट्रीय महत्व का सवाल नहीं है, पर कौतूहल का विषय जरूर है। साथ ही पार्टियों के अंदरूनी लोकतंत्र के मुद्दे पर राजनीति के वक्त विपक्ष को एक मुद्दा भी देता है। तो 50 फीसदी प्रदेश अध्यक्षों के चयन की संवैधानिक बाध्यता खत्म होने के कई दिन बाद भी क्यों भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित नहीं हो पा रहा है? इस सवाल के तीन संभावित जवाब हो सकते हैं:
भाजपा केंद्र में लगातार तीन चुनाव जीत चुकी है। राज्यों में भी ग्राफ ऊपर की ओर ही ले जा रही है। ऐसे में अकेले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तय नहीं कर सकता कि भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा। संघ को पार्टी की चिंता, पसंद-नापसंद को साथ लेकर चलना होगा।
यही स्थिति भाजपा के साथ भी है। नए अध्यक्ष का फैसला पार्टी अकेले दम पर नहीं ले सकती। उसे जिताऊ चेहरे के साथ आरएसएस की जरूरत, पसंद-नापसंद का ध्यान रखना ही होगा। वजह यह है कि भले ही मौजूदा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने 2024 के लोकसभा चुनाव के समय बयान दिया हो कि अब भाजपा को संघ के सहारे की जरूरत नहीं रह गई है, लेकिन सच यह है कि संघ भाजपा की चुनावी जीत की पीछे आज भी बड़ी ताकत है। उसी चुनाव में जब बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई तो पार्टी को इसका अहसास भी हुआ ही होगा।
कैसा हो बीजेपी का नया अध्यक्ष? इस सवाल का जवाब भाजपा और संघ के लिए अलग-अलग है। संभवतः अध्यक्ष तय होने में देरी की वजह भी यही है। भाजपा को ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ मजबूत तालमेल बिठा कर पार्टी को जीत के रास्ते पर ले जा सके। पहली बड़ी चुनौती बिहार और पश्चिम बंगाल में जीतने की होगी। इसके लिए नीतिगत स्तर पर संघ का दबदबा कम करना पड़ सकता है। यह करते हुए संघ से तालमेल भी कमजोर नहीं देना होगा। ऐसा संतुलन साधने वाला व्यक्ति अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के लिए ज्यादा मुफीद होगा। वह जाति, लिंग के आधार पर भी समीकरण बैठाएगी।
दूसरी ओर संघ ऐसे व्यक्ति को चाहेगा जो उसकी विचारधारा को मजबूती से लेकर चल सके। इसके लिए जरूरत पड़े तो सरकार की नीतियों और जरूरतों को दूसरे नंबर पर भी धकेल सके। संभव है, संघ उम्र के पैमाने पर भी जोर दे। उसे अपेक्षाकृत युवा (60 से नीचे का), साफ-सुथरी छवि वाला अध्यक्ष ज्यादा भाएगा। भाजपा के लिए उम्र अहम पैमाना नहीं भी हो सकता है।
इस सवाल का अभी कोई ठोस जवाब नहीं है। हो सकता है मानसून सत्र के बाद हो या फिर बिहार चुनाव तक अध्यक्ष का चुनाव टाला भी जा सकता है। इस संभावना की एक वजह यह मानी जा सकती है कि मध्य अगस्त में मानसून सत्र खत्म होने के बाद बिहार चुनाव की तैयारी पूरी जोर पकड़ लेगी। ऐसे में नया अध्यक्ष लाने से बिहार प्रदेश नेतृत्व के साथ तालमेल बिठाने में समस्या आ सकती है।
भाजपा की स्थापना अप्रैल 1980 में हुई थी। तब से इसके प्रमुख की कुर्सी पर 12 लोग बैठ चुके हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी: भाजपा के पहले अध्यक्ष रहे (1980–1986)। उन्होंने पार्टी की नींव रखी और जनसंघ से भाजपा में परिवर्तन को नेतृत्व दिया।
लालकृष्ण आडवाणी: तीन बार अध्यक्ष रहे। उन्होंने पार्टी को एक राष्ट्रव्यापी ताकत में बदलने में अहम भूमिका निभाई।
मुरली मनोहर जोशी: अपने कार्यकाल में वैचारिक मजबूती पर जोर दिया।
कुशाभाऊ ठाकरे: संगठन को ज़मीनी स्तर पर सशक्त किया।
बंगारू लक्ष्मण: पहले दलित अध्यक्ष बने।
जाना कृष्णमूर्ति और वेंकैया नायडू ने पार्टी को स्थायित्व और विस्तार देने का काम किया।
राजनाथ सिंह: दो बार अध्यक्ष रहे और पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया।
नितिन गडकरी: युवा नेतृत्व को मौका देने पर ज़ोर दिया।
अमित शाह: मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पार्टी को सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत में बदला।
जेपी नड्डा: वर्तमान अध्यक्ष हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा का नेतृत्व किया।
Updated on:
19 Jul 2025 07:21 am
Published on:
19 Jul 2025 06:00 am