भाषा विवाद के बीच दिल्ली सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सरकारी स्कूलों में अन्य राज्यों की भाषाओं को पढ़ाने का प्रस्ताव पेश किया है। इस पहल का उद्देश्य छात्रों में सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस प्रस्ताव की घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम छात्रों को भारत की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत से जोड़ेगा।
हाल के वर्षों में, विशेष रूप से तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में, हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने को लेकर विवाद रहा है। तमिलनाडु ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के त्रिभाषा फॉर्मूले का विरोध किया है, जिसमें दो भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी को पढ़ाने की सिफारिश की गई है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार पर हिंदी और संस्कृत थोपने का आरोप लगाया है। इसी तरह, महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी विवाद ने भी सुर्खियां बटोरी हैं, जहां उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने हिंदी को अनिवार्य करने के खिलाफ आवाज उठाई है।
दिल्ली सरकार का यह प्रस्ताव भाषाई विवादों को संतुलित करने का प्रयास है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "हम किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हैं। हमारा उद्देश्य बच्चों को भारत की विविधता से परिचित कराना और आपसी समझ को बढ़ाना है।" इस योजना के तहत स्कूलों को उपयुक्त पाठ्यपुस्तकें और शैक्षणिक सामग्री प्रदान की जाएगी, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो।
दिल्ली सरकार ने इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए एक समिति गठन करने की योजना बनाई है, जो शिक्षण सामग्री और शिक्षकों की व्यवस्था पर काम करेगी। यह कदम न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक नया प्रयोग है, बल्कि भारत की बहुभाषी संस्कृति को मजबूत करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
Published on:
21 Jul 2025 10:45 am