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बिहार चुनाव: बुद्ध की धरती पर दल-बदल का अखाड़ा, गर्मा रहा चुनावी माहौल

Bihar Assembly elections 2025: बिहार में दो फेज में विधानसभा चुनाव होने हैं। पहले फेज की वोटिंग 6 नवंबर को, जबकि दूसरे फेज की वोटिंग 11 नवंबर को होगी। नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। शादाब अहमद की रिपोर्ट में पढ़िए सियासी चाल को लेकर बिहार की जनता क्या कह रही है?...

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Bihar Assembly Election 2025 PM Modi Bihar Visit

पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार फाइल फोटो : एएनआई

Bihar Assembly elections 2025: बिहार की सियासत एक बार फिर जनता की कसौटी पर खड़ी है। यही वह धरती है जिसने लोकतंत्र की नींव रखी, जहां वैशाली ने जनाधिकारों की आवाज उठाई, बुद्ध ने करुणा सिखाई, चाणक्य ने राजनीति का सूत्र दिया और जयप्रकाश नारायण ने जनक्रांति की मशाल जलाई। लेकिन आज वही बिहार चुनावी बयार में सियासी रणभूमि बन गया है, जहां मतदाता मुद्दों और दृष्टि की खोज में है, जबकि दल जातीय समीकरणों और सत्ता-संतुलन की बाजी में उलझे हैं।

बदलते समीकरण, बढ़ता भ्रम

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं, पर इस बार तस्वीर और पेचीदा हो गई है। पटना की गलियों में नारे कम और सवाल ज़्यादा हैं, ‘कौन किसके साथ जाएगा?’ कभी ‘सुशासन बाबू’ कहे जाने वाले नीतीश कुमार अब ‘यू-टर्न’ राजनीति के प्रतीक बन चुके हैं।

महागठबंधन और एनडीए के बीच लगातार बदलते समीकरणों ने जनता को उलझा दिया है। छठ के माहौल में लोगों का कहना है कि गठबंधनों के शोर में शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पलायन जैसे असल मुद्दे पीछे छूट गए हैं। वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम किसी भी बड़े गठबंधन के लिए चुनौती बन सकती हैं।

चेहरों की भरमार, ‘भरोसे’ की तलाश

बिहार का यह चुनाव मुद्दों से ज्यादा चेहरों की लड़ाई बन गया है। चेहरों की भीड़ तो है, पर जनता चेहरों से ज्यादा भरोसे की तलाश में है। एनडीए के लिए नीतीश कुमार, सम्राट चौधरी, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता मैदान में हैं, जो खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानते हैं। वहीं महागठबंधन तेजस्वी यादव, अखिलेश प्रसाद सिंह, कन्हैया कुमार, शकील अहमद और मुकेश सहनी जैसे चेहरों पर भरोसा जता रहा है।

महिलाओं और युवाओं पर फोकस

कई राज्यों के चुनावों में महिलाओं और युवाओं की भूमिका अहम रही है। बिहार में भी सभी दल इनको अहमियत दे रहे हैं।

'मसाला' कभी खत्म नहीं होता!

पटना के डाकबंगला चौराहे पर चाय की दुकान पर बैठे डॉ. रामकुमार सिंह कहते हैं, ‘यह वही बिहार है जिसने दुनिया को लोकतंत्र दिया। यहां जनता नेता को ऊपर भी उठाती है और नीचे भी गिरा देती है। यह धरती याद दिलाती है कि लोकतंत्र में बदलाव का स्वाद लिट्टी-चोखे जितना देसी और चाइनीज नूडल्स जितना तात्कालिक दोनों हो सकता है। फर्क बस इतना है कि बिहार की राजनीति में मसाला कभी खत्म नहीं होता।’ पटना यूनिवर्सिटी के छात्र अमन राज का कहना है कि हर चुनाव में कोई न कोई पार्टी बदल देता है। नौकरी, पढ़ाई और पलायन जैसे मुद्दे हर बार पीछे छूट जाते हैं। दरियापुर के दुकानदार रामसेवक पासवान लिट्टी सेंकते हुए कहते हैं कि पहले लोग जात देखकर वोट देते थे, अब काम भी देख रहे हैं। लेकिन नेता काम कम, गठबंधन ज़्यादा बदलते हैं।

किस पार्टी का किन मुद्दों पर फोकस

NDA:
भाजपा: ऑपरेशन सिंदूर, घुसपैठिये, मुस्लिम डिप्टी सीएम, पाकिस्तान, राजद के ‘जंगलराज’ की याद दिलाना।
जेडीयू: 20 साल का विकास, अपराध नियंत्रण, महिलाओं का उत्थान, परिवारवाद से दूरी।
एलजेपी (रामविलास): पलायन रोकना, राजद के कथित गुंडाराज पर निशाना।

महागठबंधन:
राजद: नीतीश सरकार के घोटाले, पेपर लीक, हर परिवार को एक नौकरी, वक्फ कानून पर पुनर्विचार।
कांग्रेस: वोट चोरी का आरोप, 25 लाख का हेल्थ बीमा, 200 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को 2500 रुपए प्रतिमाह भत्ता।

देश की दिशा तय करेगा बिहार

बिहार के नतीजे केवल राज्य की सत्ता नहीं, बल्कि 2029 की लोकसभा रणनीति की भी दिशा तय करेंगे। यदि एनडीए सत्ता बरकरार रखता है तो केंद्र की स्थिति और मजबूत होगी। वहीं महागठबंधन की जीत इंडिया ब्लॉक को नई ऊर्जा दे सकती है।


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