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‘मातृत्व जीवन का एक मौलिक पहलू है’: हाईकोर्ट ने कहा कि इस उम्र तक महिलाएं चुन सकती हैं सरोगेसी विकल्प

केरल हाईकोर्ट ने सरोगेसी पर फैसला सुनाते हुए कहा कि मातृत्व जीवन का एक मौलिक पहलू है। कोर्ट ने कहा ​कि इच्छुक महिलाएं 51 वर्ष की आयु तक सरोगेसी का विकल्प चुन सकती हैं।

सरोगेसी पर केरल हाईकोर्ट का फैसला

Kerala High Court decision on surrogacy: केरल उच्च न्यायालय ने सरोगेसी पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इच्छुक महिला 50 साल की उम्र तक इसके लिए पात्र है। कोर्ट ने कहा कि उसकी पात्रता तभी समाप्त हो जाती है जब इच्छुक महिला 51 वर्ष की हो जाती है। मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस. मनु की खंडपीठ ने राजिता पीवी बनाम भारत संघ (2025) में एकल पीठ के फैसले को पलट दिया। इसमें कहा गया था कि इच्छुक महिला तब सरोगेसी के लिए पात्र होगी जब वह 23 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेगी और अपने 50वें जन्मदिन के पहले वाले दिन से पात्र नहीं रहेगी।

कौन है सरोगेसी के लिए पात्र

अपना फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(सी) (आई) की व्याख्या की। इसमें यह प्रावधान है कि सरोगेसी के लिए पात्रता प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए इच्छुक दंपत्ति की आयु प्रमाणन के दिन महिलाओं के लिए 23 से 50 वर्ष और पुरुषों के लिए 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

खंडपीठ ने इस प्रकार टिप्पणी की

'मातृत्व जीवन का एक अत्यंत व्यक्तिगत और मौलिक पहलू है। कोई भी ऐसी व्याख्या जो किसी को इससे स्थायी रूप से वंचित कर दे, अत्यंत सावधानीपूर्वक अपनाई जानी चाहिए। यदि किसी व्याख्या के परिणामस्वरूप पूर्ण और अपरिवर्तनीय हानि होती है— जैसे कि इस मामले में सरोगेसी के माध्यम से कभी भी संतान प्राप्त करने की असंभवता— तो इसे उच्च स्तर की जांच की आवश्यकता होती है। अतः विवादित निर्णय और आदेश को रद्द किया जाना आवश्यक है, और रिट याचिका को स्वीकार किया जाना चाहिए। इस संदर्भ में, हम यह निर्णय देते हैं कि सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 4(iii)(c)(I) के अनुसार, इच्छुक महिला 50वें वर्ष तक सरोगेसी सेवाओं के लिए पात्र रहती है, जो उसके 51वें जन्मदिन पर समाप्त हो जाती है। इसलिए, याचिकाकर्ता संख्या 1, 21 जून 2025 तक धारा 4(iii)(c) के तहत प्रमाणपत्र प्राप्त करने की पात्र हैं।'

एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दा​यर की थी याचिका

यह रिट अपील एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि महिलाओं के लिए अधिकतम आयु सीमा 51वें जन्मदिन के पूर्ववर्ती दिन तक नहीं बढ़ाई जा सकती। मामले के तथ्यों के अनुसार, इच्छुक महिला को पात्रता प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया गया था, क्योंकि उसके स्कूल प्रवेश रिकॉर्ड से पता चला था कि उसकी उम्र 50 वर्ष हो चुकी है।

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कोर्ट ने दी ये दलील

कोर्ट ने कहा कि 1897 के अधिनियम में 'टू' का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ है कि कानून दिनों की श्रृंखला में अंतिम दिन को शामिल करने का इरादा रखता है। इसका मतलब है कि जब 2021 के अधिनियम की धारा 4(सी) (आई) में यह प्रावधान है कि इच्छुक महिला की आयु 23 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए, तो कानून 50 वर्ष की आयु तक यानी 51 वर्ष की आयु तक को शामिल करने का इरादा रखता है।