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Ambedkar’s Reservation: क्या सच में 10 साल के लिए ही लागू किया था डॉ अंबेडकर ने आरक्षण, जानें क्या है सच्चाई

Baba Saheb Jayanti: डॉ. अंबेडकर ने आरक्षण को केवल 10 वर्षों के लिए प्रस्तावित किया था। यह सवाल आज भी सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर बहस का विषय बना हुआ है। आइए, इस दावे की हकीकत को समझने की कोशिश करते हैं।

भारत

Devika Chatraj

Apr 14, 2025

Reservation for 10Years: भारत के संविधान निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आरक्षण नीति की वकालत की थी। यह नीति अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) को शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में समान अवसर प्रदान करने के लिए लागू की गई। एक आम धारणा है कि डॉ. अंबेडकर ने आरक्षण को केवल 10 वर्षों के लिए प्रस्तावित किया था। यह सवाल आज भी सामाजिक और राजनीतिक मंचों पर बहस का विषय बना हुआ है। आइए, इस दावे की हकीकत को समझने की कोशिश करते हैं।

Why reservation was introduced - आरक्षण की शुरुआत

भारत में आरक्षण का इतिहास लगभग 136 वर्ष पुराना है। इसका प्रारंभ 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ हुआ। उस समय समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार की नौकरियों में समानुपातिक आरक्षण की मांग की थी। 1908 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार आरक्षण लागू किया, जिसमें प्रशासन में भागीदारी करने वाली जातियों और समुदायों के लिए उनकी हिस्सेदारी निर्धारित की गई।

Ambedkar on reservation कमजोर वर्ग के लिए था आरक्षण

वर्तमान समय में आरक्षण सामाजिक उत्थान के उद्देश्य से अधिक एक राजनीतिक हथियार बन गया है। साथ ही, आरक्षित वर्ग के प्रभावशाली और संपन्न लोगों के लिए यह उनकी भावी पीढ़ियों की सुरक्षा का साधन बन चुका है। भारतीय संविधान में आरक्षण का मूल मकसद केवल वंचित और शोषित समुदायों के जीवन स्तर को बेहतर करना था।

Dr Ambedkar 10-year Reservation Policy

डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से आरक्षण को केवल 10 साल के लिए लागू किया था, पूरी तरह सटीक नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 334 में संसद और विधानसभाओं में एससी-एसटी के लिए सीटों के आरक्षण को शुरू में 10 वर्षों के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन इसे समय-समय पर संशोधन के माध्यम से बढ़ाया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि डॉ. अंबेडकर का दृष्टिकोण सामाजिक न्याय को स्थायी रूप से सुनिश्चित करना था, न कि इसे किसी निश्चित समय-सीमा तक सीमित करना। आज भी आरक्षण नीति भारत में सामाजिक समावेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है। इस विषय पर बहस जारी है कि क्या इसे समय के साथ संशोधित करने की आवश्यकता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि डॉ. अंबेडकर का विजन वंचित वर्गों को सशक्त बनाने का था।

आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं, सहारा है- अंबेडकर

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान बनाते समय आरक्षण को स्थायी व्यवस्था नहीं बनाया था। उनका कहना था कि 10 वर्ष बाद इसकी समीक्षा होनी चाहिए कि आरक्षण प्राप्त वर्ग की स्थिति में सुधार हुआ या नहीं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि कोई वर्ग आरक्षण के माध्यम से प्रगति कर लेता है, तो उसकी अगली पीढ़ियों को इसका लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसके पीछे उनका तर्क था कि आरक्षण कोई बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे पूरी जिंदगी गुजारी जाए; यह केवल विकास का अधिकार प्रदान करने का साधन है। यही कारण है कि आंबेडकर ने संविधान में आरक्षण को स्थायी रूप नहीं दिया।

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