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दर्द भरी कहानी ‘मुस्कान’ के साथ, हौसले की उड़ान से अब नई पहचान

रवीन्द्र मिश्रा नागौर। जब अपने ही ठुकरा देते हैं, तो हमें किन्नर समाज अपनाता है। यहां पर हमें सबकुछ मिलता है। अपनापन जो किसी भी इंसान के लिए जरूरी है, वह हमें किन्नर समाज देता है। ये शब्द हैं मुस्कान के, जो आज किन्नरों के लिए हौसले की मिसाल बन चुकी हैं।

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किन्नर मुस्कान

जब अपने हो गए पराए : किन्नर समाज ने अपनेपन से अपनाया

रवीन्द्र मिश्रा

नागौर। जब अपने ही ठुकरा देते हैं, तो हमें किन्नर समाज अपनाता है। यहां पर हमें सबकुछ मिलता है। अपनापन जो किसी भी इंसान के लिए जरूरी है, वह हमें किन्नर समाज देता है। ये शब्द हैं मुस्कान के, जो आज किन्नरों के लिए हौसले की मिसाल बन चुकी हैं। मुस्कान कहती है कि सरकार ने हमें संवैधानिक अधिकार तो दे दिए, लेकिन समाज की सोच अब भी वही है। परिवार से लेकर प्रशासन तक, हर जगह हमें हेय दृष्टि से देखा जाता है। हमें काम चाहिए, सम्मान चाहिए, लेकिन पहचान के साथ जीने का अधिकार भी उतना ही जरूरी है। नागौर में आयोजित किन्नर समाज के अखिल भारतीय महासम्मेलन में जयपुर से आई मुस्कान ने अपने संघर्ष और दर्दभरी, लेकिन प्रेरणादायी यात्रा पत्रिका से साझा की।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बरेली की मुस्कान ने एमए तक की पढ़ाई की है। वे बताती हैं, लगभग छह-सात साल की उम्र में ही समझ आने लगा कि मैं बाकी लडक़ों से अलग हूं। मेरे हाव-भाव, पसंद, बोलने का तरीका लड़कियों जैसा था। जब मेडिकल जांच में यह स्पष्ट हुआ कि मैं किन्नर हूं, तो परिवार का रवैया बदल गया। जहां पहले प्यार था, वहीं अब ताने और मारपीट ने जगह ले ली। धीरे-धीरे ताने रोज की बात बन गए। स्कूल में भी बच्चे हंसते, और घर में परिजन डांटते थे।

घर से बेघर होने की कहानी

मुस्कान की जिंदगी ने बड़ा मोड़ तब लिया जब हाई स्कूल में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में लड़कियों के कपड़े पहनकर डांस किया। स्कूल में तालियां बजीं, लेकिन घर में सभी नाराज हो गए। उसके बाद तो फिर रोजाना प्रताडऩा शुरू हो गई। एक रात को बैग में दो जोड़ी कपड़े रखे और घर छोड़ दिया। स्टेशन पर कई रातें भूखे पेट गुजारीं। हाथरस में एक चाय की टपरी पर काम मिला, बदले में सिर्फ खाना मिलता था। कुछ दिनों बाद वहीं के दुकानदार ने दिल्ली जाने का टिकट कराया। दिल्ली में होटल में काम करते हुए उन्होंने खुद को संभाला और फिर जयपुर पहुंचीं। मुस्कान बताती है कि जयपुर में मुझे सुरक्षा और अपनापन मिला, जब किन्नर गुरु प्रियाबाई की शरण में आई। अब मैं अपनी गुरु बहन नैना बाई, पलक और सनम के साथ रहती हूं। यहां मुझे वह परिवार मिला, जो कभी घर में नहीं मिला।

समाज सेवा बनी जीवन का उद्देश्य

मुस्कान अब जयपुर की एनजीओ ‘सक्षम नई जिंदगी’ से जुड़ी हैं, जो सैक्स वर्कर्स के एचआईवी पॉजिटिव बच्चों के लिए काम करती है। वे कहती हैं, इन बच्चों में मैं खुद को देखती हूं, समाज ने इन्हें भी ठुकरा दिया है। मैं चाहती हूं कि कोई भी बच्चा भूखा न सोए या खुद की पहचान से शर्म महसूस न करें। वह पांच किन्नर बच्चों की देखरेख करती हैं, उनकी पढ़ाई, दवा और भोजन की जिम्मेदारी उठाती हैं। सोशल मीडिया पर एक्टिव मुस्कान मॉडलिंग और डांस के जरिये लोगों को बताना चाहती हैं कि किन्नर भी सपने देख सकते हैं और उन्हें पूरा कर सकते हैं।

हमें बस मौका चाहिए

मुस्कान की आंखों में अब डर नहीं, उम्मीद है। वह कहती है कि हम समाज से कुछ अलग नहीं चाहते, बस बराबरी का दर्जा और जीने की आजादी होनी चाहिए। हमें सुरक्षा, रोजगार और सम्मान मिले तो आसमां को भी छू सकते हैं। उनका यही संदेश है कि अपनी पहचान से मत भागो, वही तुम्हारी ताकत है।