
नावां के सांभर झील किनारे मिले मरे हुए पक्षी की तस्वीर, सैंपल लेते विशेषज्ञ। फोटो पत्रिका
Rajasthan : राजस्थान की सबसे बड़ी खारे पानी की झील सांभर में एक बार फिर प्रवासी परिंदों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया है। झील के साल्ट क्षेत्र के किनारों पर गुरुवार शाम को मृत और घायल पक्षियों के मिलने से इलाके में चिंता फैल गई है। साल 2019 और 2024 जैसी तस्वीर सामने आने की आशंका जताई जा रही है। सूचना के बाद शुक्रवार सुबह पशुपालन विभाग और वन विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं। उच्च अधिकारियों के निर्देश पर क्षेत्र में कई दल सक्रिय किए गए।
नावां पशुपालन विभाग के डॉ. मोती चौधरी ने बताया कि शुक्रवार को 14 मृत और 9 घायल पक्षी मिले हैं। अब तक कुल 15 मृत व 13 घायल पाए गए हैं। घायल पक्षियों को मिठड़ी रेस्क्यू सेंटर भेजा गया है, जहां उनका उपचार जारी है। मृत पक्षियों को नियमानुसार डंपिंग यार्ड में नष्ट किया जा रहा है। टीम ने सैंपल लिए हैं, फिलहाल मौत के कारणों की पुष्टि रिपोर्ट आने के बाद ही हो पाएगी।
मृत पक्षियों के सैंपल जांच के लिए स्टॉफ के साथ बरेली स्थित आइवीआरआइ लैब में भेजे गए हैं। संभवत: कल तक उसकी रिपोर्ट आ जाएगी। उसके बाद पक्षियों की मौत के कारण की पुष्टि हो जाएगी। रेस्क्यू के लिए टीम जुटी हुई है। एसडीआरएफ से भी मदद मांगी है।
आकांक्षा गोठवाल, एसीएफ, वन विभाग
राज्य रोग निदान केंद्र से सांभर झील में विभाग के विशेषज्ञ जांच के सैंपल लेकर आए है। जांच रिपोर्ट के बाद मौत का कारण पता चल पाएगा। प्रथमदृष्ट्या एवियम बोटुलिज्म नामक बीमारी से मौत होने की संभावना न के बराबर ही लग रही है।
डॉ. आनंद सैजरा, निदेशक, पशुपालन विभाग
साल 2019 में सांभर झील में एवियन बोटुलिज्म संक्रमण से 30 से 50 हजार प्रवासी पक्षियों की मौत हुई थी। इसके बाद अक्टूबर 2024 में करीब 100 से 150 पक्षियों की जान गई थी। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह बीमारी क्लोस्ट्रीडियम बोटुलिनम नाम के बैक्टीरिया से फैलती है। इस बीमारी से पक्षियों में लकवा आ जाता है और पानी में डूब जाते है। अत्यधिक बारिश और झील में जैविक अपशिष्ट बढ़ने से यह समस्या दोबारा पनपने की आशंका जताई जा रही है।
जोधपुर शहर के ऐतिहासिक जलाशयों में शामिल गुलाब सागर में पिछले कुछ दिनों से यहां बड़ी संख्या में मछलियां मर रही हैं। जलाशय के आस-पास दुर्गंध फैलने से स्थानीय लोगों का जीना दूभर हो गया है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि नालियों और सीवरेज का पानी सीधे सागर में गिरने से यह स्थिति बनी है। जलाशय में लगातार दूषित जल आने से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो गई, जिससे मछलियां मर रही हैं। कई बार शिकायतों के बावजूद नगर निगम या जलदाय विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, जलाशयों में सीवरेज का पानी मिलने से उसमें जैविक अपशिष्ट बढ़ जाता है, जिससे जलीय जीवों के जीवित रहने की क्षमता घट जाती है। यदि शीघ्र सफाई और जल प्रवाह का प्रबंधन नहीं किया गया, तो गुलाब सागर पूरी तरह मृत जलाशय बन सकता है।
Updated on:
02 Nov 2025 07:11 am
Published on:
01 Nov 2025 08:17 am
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