4 अगस्त 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

अशफाक उल्ला खां: काकोरी कांड का नायक… जिन्होंने अंग्रेजों को बता दिया, हिंदुस्तानी अब डरते नहीं

15 अगस्त का दिन हर भारतीय के लिए गर्व और सम्मान का दिन है, जब हम उन अनगिनत बलिदानों को याद करते हैं, जिन्होंने हमें यह आजादी दिलाई। आज हम एक ऐसे महान क्रांतिकारी की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। यह कहानी है हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक, युवा शहीद अशफाक उल्ला खां की।

लखनऊ

Aman Pandey

Aug 04, 2025

Ashfaqulla Khan, Kakori Conspiracy, Indian freedom fighters, 15 August heroes, Indian Independence Day, martyr Ashfaqulla Khan, Ram Prasad Bismil, Hindustan Republican Association, British India revolution, freedom struggle India, young Indian martyrs, Kakori train robbery, Ashfaqulla biography, Indian Muslim freedom fighters, Hindu Muslim unity, 1925 Kakori case, Faizabad jail execution, Hasra

साल था 1925। अंग्रेजों की नींद उड़ गई जब 9 अगस्त को काकोरी स्टेशन पर सरकारी खजाना लूट लिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने ये साहसिक कदम उठाया। ये कोई चोरी नहीं थी, बल्कि अपने ही देश से लूटे गए धन को देश के लिए वापस लेना था।

अशफाक उल्ला खां ने उस वक्त अपना नाम 'कुमारजी' रखा था, ताकि ब्रिटिश सरकार को चकमा दे सकें। जैसे ही ब्रिटिश सरका को इस घटना के बारे में मालूम चला वह पागल हो गई। एक-एक कर सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया और मुकदमे चलाए गए। 'काकोरी कांड' के लिए अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में 19 दिसंबर 1927 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

अशफाक उल्ला के साथ इस कांड में राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को भी फांसी की सजा दी गई। सचिंद्र सान्याल और सचिंद्र बख्शी को कालापानी और बाकी क्रांतिकारियों को 4 साल से 14 साल तक की सजा सुनाई गई। आइए जानते हैं अशफाक उल्ला खां और काकोरी कांड से जुड़ी बातें…

शहीदों की कहानियों ने अशफाक के मन पर डाला गहरा प्रभाव

अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में एक पठान परिवार में हुआ था। यह वह दौर था जब पूरे देश में आजादी की लड़ाई की आग सुलग रही थी। परिवार के सभी लोग सरकारी नौकरी में थे। परिवार के अन्य सदस्यों की तरह अशफाक से भी यही अपेक्षा थी कि वह सरकारी नौकरी करें। लेकिन अशफाक का मन बचपन से ही इन सब से दूर था। उनके दिल में देश के लिए कुछ कर गुजरने की गहरी तड़प थी। बंगाल के क्रांतिकारियों, जैसे खुदीराम बोस और अन्य शहीदों की कहानियों ने उनके मन पर गहरा प्रभाव डाला था और उनके भीतर क्रांति की एक ऐसी ज्वाला जिसने उनकी जिंदगी की दिशा ही बदल दी।

कविताएं भी लिखते थे अशफाक

अशफाक उल्ला खां सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थे, बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें घुड़सवारी, निशानेबाजी और तैराकी का बेहद शौक था, जो उन्होंने सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि खुद को शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सीखा था। उनके ये शौक आगे चलकर एक क्रांतिकारी के रूप में उनके लिए बहुत काम आए। इसके साथ ही, वह कविताएं भी लिखा करते थे, जिनमें वह 'हसरत' उपनाम का इस्तेमाल करते थे।

यह सच है कि अशफाक उल्ला खां का मन किताबी पढ़ाई में नहीं लगता था। वह कक्षाओं में बैठकर पढ़ने के बजाय, बंदूक लेकर शिकार पर जाना या नदियों में तैरना ज्यादा पसंद करते थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वह ज्ञान से दूर थे। उनका मन देश की आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों और देशभक्ति की कहानियों में बहुत लगता था। वह ऐसी कथाओं को बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ते थे, जिनसे उन्हें अपने देश की मिट्टी और संस्कृति से जुड़ने की प्रेरणा मिलती थी। उनके लिए ये कहानियां ही उनकी असली शिक्षा थीं, जिन्होंने उन्हें एक सच्चा देशभक्त और क्रांतिकारी बनाया।

काकोरी कांड: ऐसे लूटा था सरकारी खजाना

महात्मा गांधी का प्रभाव अशफाक उल्ला खां के जीवन पर शुरू से ही था। गांधीजी ने 'असहयोग आंदोलन' वापस ले लिया तो उनके मन को अत्यंत पीड़ा पहुंची। इसके बाद रामप्रसाद बिस्मिल और चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 8 अगस्त, 1925 को क्रांतिकारियों की एक अहम बैठक हुई। इसमें 9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन पर आने वाली सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को लूटने की योजना बनाई गई, जिसमें सरकारी खजाना था।

दरअसल, क्रांतिकारी जिस धन को लूटना चाहते थे, वह धन अंग्रेजों ने भारतीयों से ही हड़पा था। 9 अगस्त, 1925 को अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, चन्द्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह, सचिन्द्र बख्शी, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्द लाल और मन्मथ लाल गुप्त ने अपनी योजना को अंजाम देते हुए लखनऊ के नजदीक 'काकोरी' में ट्रेन से ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।

इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने एक-एक कर सभी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया, लेकिन लेकिन चन्द्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खां पुलिस के हाथ नहीं आए।

26 सितंबर 1925 के दिन हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ राजद्रोह करने, सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने और मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया गया। बाद में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार साल की सजा से लेकर अधिकतम काला पानी की सजा दी गई।