खंडवा. खंडवा और बैतूल की सीमा से सटा गांव बागड़ा। कोरकू ही यहां संवाद का मुख्य जरिया। हिंदी पर आधारित स्कूली पाठ्यक्रम को समझना बच्चों के लिए आसान नहीं। ऐसे में शिक्षक ने कोर्स को कोरकू में बदलकर रूचि बढ़ाई। सीखने की ललक बढ़ी तो बच्चे पाठ्यक्रम से भी जुड़ाव महसूस करने लगे।
आदिवासी बहुल खालवा ब्लॉक के प्राथमिक स्कूल बागड़ा के शिक्षक सूरज साठे के सामने समस्या आई तो उन्होंने बहाना बनाने की बजाय समाधान खोजा। इसका नतीजा ये रहा कि हिंदी की समझ नहीं होने से अरूचि के चलते जो बच्चे स्कूल छोड़ सकते थे, वे बने रहे और सीखने की ललक भी बढ़ी। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में शिक्षक साठे ने ऑडियो व वीडियो लेसन भी तैयार किए।
एनसीएफ की भी है मूल अवधारणा
नेशनल कॅरीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) की मूल अवधारणा यही है कि बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए।
इस तरह किए सिखाने के प्रयास
गिनती चार्ट बनाते हुए इसमें अंक, हिन्दी, कोरकू व चित्र के आधार पर समझाने का प्रयास किया। जैसे- 1, एक, मियां और फिर एक वस्तु का चित्र बनाया। कोरकू में दो को बरी, तीन को अफई, चार को उफुन, पांच को मोनइ, छह को तुरई, सात को एई, आठ को इलर, नौ को अरेई व दस को गेल कहते हैं। इसी तरह शरीर के अंगों में सिर को माथो कापर, चेहरे को मुंडो मुवर, कमर को कम्मरमायन कहते हैं। इस तरह से सिखाने के प्रयास किए।
Published on:
05 Sept 2020 10:45 pm