बालमीक पांडेय @कटनी. जब देश पर संकट के बादल मंडराते हैं, तब धरती मां के सपूत अपनी जान हथेली पर रखकर दुश्मन को ऐसा जवाब देते हैं, जिसे पीढिय़ां याद रखती हैं। शहर के जागृति कॉलोनी में रहने वाले परमानंद चतुर्वेदी ऐसे ही वीर सपूत हैं, जिन्होंने 1980 से 2008 तक भारतीय सेना की एयर डिफेंस यूनिट में सेवा करते हुए सिपाही से लेकर कैप्टन तक का गौरवमयी सफर तय किया। परमानंद चतुर्वेदी सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि वे एक जीवंत कथा हैं एक चलती-फिरती मिसाल हैं देशभक्ति की, जिनके रगों में खून नहीं, भारत माता के लिए बहता समर्पण है। कारगिल में जब दुश्मन ने सर उठाया, तो हमने उसे पैरों तले कुचल दिया, वो कहते हैं, मां ने जन्म दिया, पर वतन ने वजूद दिया। जो वतन के काम ना आए, वो सांस भी क्या काम की।
1999 में जब कारगिल की बर्फीली चोटियों पर दुश्मन ने घुसपैठ की, तो परमानंद चतुर्वेदी की 401 लाइट एडी रेजीमेंट जम्मू-कश्मीर के पंड्राज पोस्ट पर तैनात थी। उनकी ड्यूटी के दो साल पूरे हो चुके थे, वापस लौटना था, लेकिन जैसे ही युद्ध छिड़ा, वे फिर से मोर्चे पर डट गए, बिना एक पल गवाए, बिना कोई सवाल पूछे। ब्रिगेडियर सतवीर सिंह के नेतृत्व में काम कर रही रेजीमेंट को आदेश मिला कि दुश्मन चार ऊंची पहाडिय़ों पर कब्जा कर चुका है। पहले 15-बिहार की कंपनी ने पेट्रोलिंग की जिसे पाकिस्तानी सेना खत्म कर दिया था। नागा रेजीमेंट की पेट्रोलिंग टीम ने पुष्टि की और फिर शुरू हुआ भारत का पलटवार एक सुनियोजित, साहसी और निर्णायक प्रतिकार। सूचना मिली कि चार पहाडिय़ों पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया है। नागा कंपनी द्वारा की गई पेट्रोलिंग में यह पुष्टि हुई, जिसके बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आदेश पर सेना ने पूरी ताकत झोंक दी थी। 1999 के कारगिल युद्ध के संस्मरण को याद करते हुए परमानंद बताते हैं युद्ध की भयंकरता और दुश्मनों की कायरता ने भारतीय सेना को और अधिक संगठित और दृढ़ बना दिया।
परमानंद बताते हैं 28 हजार फीट नीचे खड़ी भारतीय सेना ऊपर चढऩे का रास्ता तलाश रही थी। ऊपर से गिरता हर पत्थर मौत बनकर आता था। लेकिन हम डरे नहीं… झुके नहीं… रुके नहीं। 15 दिनों तक बोफोर्स तोपों से लगातार फायरिंग की गई। मिराज-2000, मिग-21 और जगवार जैसे लड़ाकू विमानों से आकाश से आग बरसी। नीचे से पैदल सेना ने दुश्मन की हर हरकत को कुचलना शुरू किया। 21वें दिन पोस्ट पर कब्जा कर लिया गया, लेकिन असली कहानी तब शुरू हुई जब पाकिस्तान के दो हेलीकॉप्टर भारत की सीमा में घुस आए। मैंने अपनी आंखों के सामने अपने तीन साथियों को खोया और फिर मेरी अंगुली ट्रिगर पर थम गई।
परमानंद ने कहा कि देश के दुश्मन का हेलीकॉप्टर आया… हमला किया… और हमारे तीन साथी शहीद हो गए। खून से लथपथ धरती मां कुछ कह नहीं रही थी, लेकिन उसका मौन चिल्ला रहा था बदला लो! जब दुश्मन का दूसरा हेलीकॉप्टर लौटा, तो परमानंद चतुर्वेदी ने इगला मिसाइल थामी और चुपचाप निशाना साधा, फायर किया। हेलीकॉप्टर आग का गोला बनकर गिरा उसमें सवार 17 पाकिस्तानी सैनिकों सहित हथियार और गोला-बारूद का जखीरा खत्म हो गया। थोड़ी ही देर बाद दूसरा हेलीकॉप्टर भी परमानंद की मिसाइल से टकराकर आसमान में बिखर गया।
बाद में चीता हेलीकॉप्टर से क्षेत्र की जांच हुई। और 26 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल में अंतिम विजय दर्ज की। हजारों पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर, हर पोस्ट को कब्जे में लेते हुए तिरंगा उस पहाड़ी पर फहराया गया, जहां कभी दुश्मन ने आंख उठाई थी। मैंने सेना से रिटायरमेंट लिया है, सेवा से नहीं। परमानंद गर्व से कहते हैं। उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा गया, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार वो था जिस दिन उन्होंने पाकिस्तानी झंडे को झुका कर तिरंगे को लहराते देखा। रिटायरमेंट के बाद पूर्व सैनिकों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। परमानंद चतुर्वेदी जैसे योद्धा न सिर्फ लड़ते हैं, वे आने वाली पीढिय़ों को जीने का तरीका सिखाते हैं राष्ट्र के लिए, सम्मान के लिए, तिरंगे के लिए।
Published on:
26 Jul 2025 09:09 pm