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रायल्टी का मार्बल उद्योग को खतरनाक झटका: 15 साल में 90 फीसदी पतन!, कॉन्क्लेव में जग सकती है उम्मीद

राजस्थान में 900 रुपए क्यूबिक मीटर तो कटनी में लग रही 1200 रुपए रायल्टी, जीएसटी भी 18 प्रतिशत माइनिंग कॉन्क्लेव में माइनिंग को इंडस्ट्री का दर्जा मिलने और प्रदेश के मार्बल और ग्रेनाइट को सीआरएस में शामिल करने से फिर जग सकती है उम्मीद

कटनी

Balmeek Pandey

Aug 04, 2025

Discussion on marble in mining conclave
Discussion on marble in mining conclave

कटनी. कभी कटनी की पहचान बना मार्बल उद्योग अब दम तोड़ता नजर आ रहा है। 1998 में जिला बनने के साथ ही बहोरीबंद-स्लीमनाबाद क्षेत्र में शुरू हुआ मार्बल खनन 1999 में रफ्तार पकड़ी और 2010 तक अपने चरम पर रहा। कटनी का संगमरमर दिल्ली से लेकर दुबई तक पहुंचा और शहर को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। लेकिन सरकारी उपेक्षा, रॉयल्टी की विसंगतियों और पर्यावरणीय अड़चनों ने उद्योग को धीरे-धीरे गर्त में धकेल दिया। उद्योग की बदहाली का असर इतना गहरा है कि कई कारोबारी अन्य राज्यों में पलायन कर गए हैं। जो बचे हैं, वे कर्मचारियों के सहारे कारोबार चलाने की कोशिश कर रहे हैं।

2010 तक जिले में 60 मार्बल खदानें संचालित हो रही थीं, जो करोड़ों के राजस्व के साथ हजारों लोगों के रोजगार का जरिया थीं। वर्तमान में मात्र 10 खदानें ही काम कर रही हैं, शेष या तो बंद हो चुकी हैं या बंद होने के कगार पर हैं। जानकारी के अनुसार राजस्थान में 900 रुपए क्यूबिक मीटर है, जबकि कटनी में 1200 रुपए क्यूबिक मीटर है। पहल 5 प्रतिशत जीएसटी लग रही थी, जिसे बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया। यह ब्लॉक और स्लैब दोनों में लागू है। मार्बल की औसत गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धी बाजार के चलते व्यापारी टिक नहीं पा रहे। यही वजह है कि जिले में 80 से 90 फीसदी खदानें बंद हो चुकी हैं।

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प्रशासनिक बाधाएं, नीतिगत उलझनें भी जिम्मेदार

  • पर्यावरण अनुमति न मिल पाने के कारण 10 से अधिक खदानें बंद
  • कई खदानों में माल नीचे चला गया है, जिससे कास्टिंग की समस्या
  • ग्राम निमास के खसरा नंबर 210 में स्थित 10-12 खदानों पर न्यायालयीय मामला लंबित
  • सिंगल विंडो सिस्टम के अभाव में फाइलें भोपाल तक जाती हैं और प्रक्रिया हो जाती है लंबी
  • सीएम हेल्पलाइन की अनावश्यक शिकायतों से कारोबारियों में असुरक्षा का माहौल है

सरकारी उपेक्षा से टूटा भरोसा

राजस्थान के विपरीत मध्यप्रदेश सरकार ने कटनी के मार्बल को सीएसआर में शामिल नहीं किया है। शासकीय भवनों में इसके उपयोग को बढ़ावा नहीं दिया गया। प्रचार-प्रसार व एक्सपोर्ट में भी किसी तरह की सरकारी पहल नहीं की गई, जिससे बाजार में इसकी मांग लगातार घटती चली गई। कटनी के मार्बल में संगमरमर जैसी चमक और जबरदस्त मजबूती है। इसकी उच्च गुणवत्ता और टिकाऊपन इसे मंदिरों, वास्तु स्मारकों, फर्श, किचन काउंटर और दीवारों के लिए उपयुक्त बनाता है। इसमें दाग-धब्बे भी कम पड़ते हैं, जिससे यह घरेलू और व्यावसायिक उपयोग के लिए भी आदर्श माना जाता है।

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माइनिंग कॉन्क्लेव से जग सकती है नई उम्मीद

कटनी में 23 अगस्त को माइनिंग कॉन्क्लेव आयोजित किया जाएगा, जिसमें सीएम डॉ. मोहन यादव, केंद्रीय व राज्यमंत्री सहित विशेषज्ञ मौजूद रहेंगे। इस आयोजन में मार्बल उद्योग को पुनर्जीवित करने, इसकी गुणवत्ता को नए उपयोगों में लाने और नीति सुधार पर चर्चा हो और कोई ठोस निर्णय निकलता है तो कटनी का मार्बल उद्योग फिर से चमक सकता है और जिले के विकास को रफ्तार मिल सकती है। कारोबारी विजय गोखरू का कहना है कि माइनिंग को इंडस्ट्री का दर्जा दिया जाए, इसके अलावा मार्बल सहित प्रदेश में निकलने वाले ग्रेनाइट को सीएसआर में जोड़ा जाए, तो प्रदेश की दिशा व दशा बदलेगी।

अधिकारियों ने कही यह बात

रत्नेश दीक्षित, उप संचालक खनिज ने कहा कि मार्बल में रायल्टी सहित जो भी समस्याएं हैं उनको भी कॉन्क्लेव में रखा जा रहा है। कारोबारियों की बात सुनी जाएगी। उद्योग को बढ़ावा देने क्या बेहतर पहल हो सकती है इस पर विचार किया जाएगा।