
बीमार घोड़े का इलाज (Photo source- Patrika)
CG News: रविवार की रात करीब 11.30 बजे सड़क किनारे एक काला घोड़ा गंभीर रूप से बीमार हालत में तड़पता खड़ा था। उसकी सांसें धीमी हो रही थीं और आंखों में दर्द व बेबसी साफ झलक रही थी। स्थानीय सिटी ढाबे के संचालक ने जब यह दृश्य देखा तो उन्होंने बिना देर किए मदद का हाथ बढ़ाया। उन्होंने भानुप्रतापपुर के निवासी संदीप छाबड़ा और सौरव सचदेव की मदद से घोड़े को सड़क से हटाकर ढाबे के भीतर सुरक्षित स्थान पर बांध दिया।
तीनों ने मिलकर घोड़े के लिए खाना और पानी की व्यवस्था की जिससे उसकी हालत में सुधार आया। उनकी पहल ने यह साबित कर दिया कि इंसानियत अभी जिंदा है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यह घोड़ा किसी घोड़ेवालों का था जो उसी दिन क्षेत्र में पहुंचे थे। लेकिन जब घोड़ा बीमार हुआ तो उन्होंने उसे सड़क पर तड़पता छोड़ दिया और वहां से चले गए।
स्थानीय लोगों ने इसे अमानवीय और पशु क्रूरता का ज्वलंत उदाहरण बताया। कांकेर जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सत्यम मित्रा को मामले की जानकारी दी गई तो उन्होंने खुद डॉक्टरों से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन भानुप्रतापपुर के किसी भी डॉक्टर ने उनका कॉल रिसीव नहीं किया। यह घटना पशु चिकित्सा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
वहीं भानुप्रतापपुर पशु चिकित्सालय के वरिष्ठ कर्मचारी केपी मिश्रा ने इंसानियत का परिचय दिया। हालांकि वे डॉक्टर नहीं हैं लेकिन करीब 30 वर्षों से सेवा दे रहे हैं। उन्होंने देर रात मौके पर पहुंचकर अपनी समझ और अनुभव के दम पर घोड़े का इलाज किया। उनकी तत्परता से घोड़े की जान बच गई।
CG News: घटना की जानकारी मिलने पर लोगों ने तुरंत भानुप्रतापपुर पशु चिकित्सालय में फोन किया, लेकिन किसी भी डॉक्टर ने फोन नहीं उठाया। जब कुछ लोग अस्पताल पहुंचे तो वहां ताला लटका हुआ मिला। जानकारी के अनुसार अस्पताल में चार डॉक्टर पदस्थ हैं लेकिन रात में कोई भी मौजूद नहीं था। इससे यह स्पष्ट होता है कि बीमार या घायल मवेशियों को रात के समय इलाज मिलना असंभव है।
Published on:
28 Oct 2025 01:45 pm
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