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Lohargal Dham: राजस्थान के इस जिले में है धरती का पहला तीर्थ, यहां के सूर्य कुंड में गल गए थे पांडवों के अस्त्र-शस्त्र

Lohargal Dham: लोहार्गल धाम सूर्य मंदिर में रखे करीब 600 वर्ष पूर्व संस्कृत भाषा लिखे गए लोहार्गल महात्मय ग्रंथ के अनुसार वर्तमान लोहार्गल धाम सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्म सरोवर था जिसे पृथ्वी का प्रथम तीर्थ स्थल माना गया है।

Lohargal Dham Surya Kund
Photo- Patrika

राजस्थान के झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ उपखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर जिले के अंतिम छोर पर पृथ्वी का पहला तीर्थ लोहार्गल धाम स्थित है। लोहार्गल धाम सूर्य मंदिर में रखे करीब 600 वर्ष पूर्व संस्कृत भाषा लिखे गए लोहार्गल महात्मय ग्रंथ के अनुसार वर्तमान लोहार्गल धाम सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्म सरोवर था जिसे धरती का प्रथम तीर्थ स्थल माना गया है।

इस स्थान पर 24 कोस परिधि जितने बड़े ब्रह्म सरोवर में भगवान विष्णु का सबसे पहला मत्स्य अवतार हुआ था। कालांतर में भगवान विष्णु के आदेश पर माल व केतु पर्वत ने ब्रह्म सरोवर को ढक लिया तो पर्वतों के दबाव से सरोवर से सूर्य क्षेत्र लोहार्गल धाम, करकोटिका (किरोड़ी), शाकंभरी, नागकुंड, टपकेश्वर, शोभावती तथा खोरी कुंड सहित 7 जल धाराएं निकली। तब से आज तक इन 7 धाराओं के अंतिम छोर से होकर भाद्रपद मास में श्रद्धालु 24 कोसीय परिक्रमा लगाते आ रहे हैं।

24 कोसीय परिक्रमा सर्वप्रथम भगवान शिव ने अपने परिवार के साथ की थी। श्रावण मास में लाखों शिवभक्त लोहार्गल धाम के सूर्य कुंड का पवित्र जल कावड़ के रूप में ले जाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। लोहार्गल धाम सूर्य कुंड में सालभर गौमुख से आने वाले पवित्र जल के स्रोत का आज तक वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाए।

भगवान परशुराम द्वारा निर्मित दोष निवारण यज्ञ की वेदी है वर्तमान सूर्यकुंड

पौराणिक ग्रंथों व लोहार्गल महात्यमय के अनुसार भगवान परशुराम ने लोहार्गल में प्रायश्चित यज्ञ व अपने पिता महर्षि जमदग्नि की पितृ आत्मा का तर्पण किया था। ब्रह्म क्षेत्र (वर्तमान लोहार्गल धाम) में स्वर्ण जडि़त 100 योजन जितनी बड़ी यज्ञ वेदी का निर्माण करवाया। यज्ञ वेदी के पूर्व दिशा में भगवान सूर्य को आह्वान कर सपत्नीक विराजमान किया तथा पश्चिम में भगवान शिव की स्थापना की। तब से आज तक दोनों मंदिर अकाट्य रूप से विराजमान हैं। तब से ही लोहार्गल धाम का पितृ तर्पण, पिंडदान व दिवंगत लोगों की अस्थि प्रवाह करने का विशेष महत्व है।

पांडवों ने अज्ञातवास का अंतिम समय सूर्य क्षेत्र लोहार्गल में बिताया

पांडवों ने 12 साल के वनवास के बाद 1 साल के अज्ञातवास का काफी समय सूर्य क्षेत्र में आकर सूर्य मंदिर के पीछे माल व केतु पर्वत की गुफाओं में छिप कर बिताया था। सूर्य मंदिर के पीछे भीम द्वारा बनाया गया भीमकुंड आज भी मौजूद है। लोहार्गल के सूर्य कुंड में पांडवों ने स्नान किया। अर्जुन का गांडीव धनुष व भीम की गदा सूर्य कुंड के जल में छोड़े गए तो यह शस्त्र द्रवीभूत हो गए। तब जाकर पांडवों को पाप से मुक्ति मिली। इसी कारण तीर्थ स्थान का नाम लोहार्गल पड़ा।

लोहार्गल क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष प्राचीन हैं अनेक मंदिर

सूर्य क्षेत्र लोहार्गल धाम में सूर्य मंदिर, सूर्य कुंड, शिव मंदिर, भीम गुफा, भीम कुंड, ज्ञान बावड़ी, चेतनदास की बावड़ी, वनखंडी, माल व केतु पर्वन पर भगवान लक्ष्मण का मंदिर, वेंकटेश तिरूपति बालाजी धाम सहित दर्जनों सैंकड़ों वर्ष प्राचीन मंदिर हैं।

24 कोसीय परिक्रमा में आते हैं 20 से 25 लाख श्रद्धालु

हर वर्ष गोगा नवमी को प्रात: सूर्य कुंड में स्नान करने के बाद भगवान सूर्यनारायण व भगवान शिव को जल अर्पित कर ठाकुरजी की पालकी के साथ 24 कोसीय परिक्रमा शुरू होती है। यह परिक्रमा भाद्रपद अमावस्या के दिन वापस लोहार्गल धाम सूर्य कुंड में स्नान करने के बाद संपन्न होती है।