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राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के घर की रसोई से लेकर ताश की मेज तक… कुछ अनसुनी बातें

मैथिलीशरण गुप्त, एक ऐसे कवि थे जिनकी कविताएं भारत की आजादी के आंदोलन में प्रेरणा का स्रोत बनीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे एक सामान्य इंसान भी थे, जिन्हें ताश खेलना, बुंदेली खाना पसंद था और अपनी बहू से खास लगाव था? आइए, राष्ट्रकवि के जीवन के कुछ रोचक किस्सों के बारे में जानते हैं।

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Beyond Verses The Unseen Side of Maithili Sharan Gupt, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के घर की रसोई से लेकर ताश की मेज तक… कुछ अनसुनी बातें

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त: बचपन, लिखने का शौक और अनकही कहानियां

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 3 अगस्त को जयंती है। झांसी के चिरगांव में जन्मे इस महान कवि के बारे में हम सब जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने बचपन में ही पढ़ाई छोड़ दी थी या फिर अपनी बहू से महाकाव्य लिखवाते थे? आज हम आपको राष्ट्रकवि के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से रूबरू करा रहे है।

पढ़ाई से दूर, कविता की ओर:

मैथिलीशरण गुप्त को पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे खेल-कूद में अधिक रुचि रखते थे और बचपन में ही पढ़ाई छोड़कर कविता लिखने लगे। कबीरदास के भक्त, गुप्त जी को साहित्य जगत में 'दद्दा' के नाम से जाना जाता था।

ताश के शौकीन राष्ट्रकवि:

राष्ट्र कवि की बहू शांति शरण गुप्त के अनुसार, गुप्त जी ताश खेलने के शौकीन थे। वे जानबूझकर अपनी बहू से हार जाते थे ताकि उनका मनोबल बना रहे। शांति जी ने ही गुप्त जी के 'राजा-प्रजा' और 'विष्णु प्रिया' जैसे महाकाव्य लिखे हैं।

बुंदेली खाना और विशेष कुक:

गुप्त जी को बुंदेली खाना बहुत पसंद था। उनके लिए एक विशेष रसोइया, गिरधारी, था जो उनके लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाता था। गिरधारी ने अपना पूरा जीवन गुप्त परिवार की सेवा में लगा दिया।

कवियों का मेजबान:

गुप्त जी अपने घर पर रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, नरेंद्र शर्मा जैसे कई मशहूर कवियों को आमंत्रित करते थे।