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पदश्री हुकमचन्द पाटीदार ने Organic Farming को देश में दी पहचान, 50 हजार से अधिक किसानों को जैविक खेती से जोड़ा

झालावाड़ के मानपुरा गांव के हुकमचन्द पाटीदार जैविक खेती के लिए बड़ा नाम है। वे किसानों की बाजार पर निर्भरता कम करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं।

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हुकमचन्द पाटीदार। फोटो: पत्रिका

Hukumchand Patidar: झालावाड़ के मानपुरा गांव के हुकमचन्द पाटीदार जैविक खेती के लिए बड़ा नाम है। वे किसानों की बाजार पर निर्भरता कम करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्हें केंद्र सरकार ने 2018 में भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया था।

पाटीदार ने हाल ही जयपुर, सीकर, भरतपुर, डीग सहित सात स्थानों पर करीब 3 हजार से अधिक किसानों को जैविक खेती के लिए प्रशिक्षण दिया है। वे जैविक गेहूं, चना, मैथी, धनियां उपलब्ध करवाने का काम कर रहे हैं। वे गो आधारित खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।

अपने खेतों में देशी खाद व गोमूत्र से बनी जैविक दवाइयां ही काम में लेते हैं। पाटीदार 25 एकड़ खेत में संतरा, धनियां, गेहूं, मैथी, चना, लहसुन पैदा करते हैं। पाटीदार के यहां तैयार जैविक उत्पाद 2015 से 2019 तक जापान, स्विट्जरलैंड तक गए। कोरोना बाद से जयपुर, इंदौर, कोटा के उपभोक्ता ले जाते हैं। पाटीदार 50 हजार से अधिक किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित कर चुके हैं।

अधिक लागत से किसान कर्जदार

पाटीदार कहते हैं आज हालात बिगड़ते जा रहे हैं, किसान के ऊपर कर्ज बढ़ता जा रहा है। उत्पादन मूल्य अधिक होने से किसान कर्जदार हो रहा है। नागपुर में पिछले दिनों आयोजित भारतीय किसान संघ के सम्मेलन में कृषि संबंधित सारी व्यवस्थाएं सुधारने की मांग की है। मेरा गांव मेरा तीर्थ थीम पर हमें काम करना होगा। हर भारतीय को इस पर काम करना होगा कि मेरा गांव समृद्ध और साफ-सुथरा बने।

साल 2004 में की जैविक खेती की शुरुआत

पाटीदार ने जैविक खेती की शुरुआत 2004 में की। आज वह खेती का सामान बाजार से नहीं लाते हैं, वर्मी कंपोस्ट व पंचगव्य उत्पाद ही काम में लेते हैं। उन्होंने देशी नस्ल की गाय पाल रखी हैं, जिनके गोबर-गोमूत्र से वर्मीकंपोस्ट बनाते हैं।