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साध्वी प्रशमिता और साध्वी अर्हमनिधि के प्रवचनों में समझाया पर्व का महत्व

रक्षाबंधन पर्व पर विशेष प्रवचन माला में साध्वी प्रशमिता महाराज और साध्वी अर्हमनिधि महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन शास्त्रों में वर्णन है—तीर्थंकर परमात्मा के जन्म कल्याणक पर 56 दिक कुमारियां शुचि कर्म पूर्ण कर उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर संपूर्ण विश्व के मंगल की कामना करती हैं।

रक्षाबंधन पर्व पर विशेष प्रवचन माला में साध्वी प्रशमिता महाराज और साध्वी अर्हमनिधि महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन शास्त्रों में वर्णन है—तीर्थंकर परमात्मा के जन्म कल्याणक पर 56 दिक कुमारियां शुचि कर्म पूर्ण कर उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर संपूर्ण विश्व के मंगल की कामना करती हैं। वर्तमान में यह पर्व भाई-बहन के पवित्र संबंध को और अधिक दृढ़ करने का संदेश देता है। साध्वी प्रशमिता ने कहा कि रक्षाबंधन केवल उत्सव नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का स्मरण कराता है। यह धागा भाई-बहन दोनों को याद दिलाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी वे एक-दूसरे का साथ निभाएं। उन्होंने संदेश दिया कि आडंबर से मुक्त, मन के पवित्र भावों से रक्षासूत्र बांधना ही इस पर्व की सच्ची पूर्णता है। चक्रवर्ती सम्राट पद्मवर और विष्णु कुमार के दृष्टांत से उन्होंने इस दिन का महत्व स्पष्ट किया।

प्रवचनों में परमात्मा के समवशरण की रचना का उल्लेख करते हुए बताया गया कि कैवल्य ज्ञान कल्याणक के बाद 12वें देवलोक से समयक्तव धारी देव आकर समवशरण बनाते हैं, जिसमें परमात्मा पूर्वमुखी होते हैं और तीन दिशाओं में उनके प्रतिबिंब साक्षात अनुभूति करवाते हैं। इसी आधार पर शिखरबंध जिनालयों में मंगल मूर्ति का विधान होता है।

अठ्ठाई तप की तपस्वी पुष्पा पारसमल संखलेचा देवड़ा, जैसलमेर का वरघोड़ा निकाला गया, जिसमें सकल जैन समाज ने भाग लेकर तप की अनुमोदना की। साध्वी परमप्रिया और साध्वी अर्पणनिधि ने भजनों के माध्यम से तप का महत्व समझाया। सामूहिक गुरुवंदन के साथ तपस्वी पुष्पा संखलेचा का बहुमान हुआ। अंत में गुरु भगवंतों ने सकल संघ को आशीर्वाद स्वरूप अभिमंत्रित रक्षासूत्र प्रदान किए।