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Rajasthan: मजदूर की बेटी ने बताया, ईमानदारी सोने से ज्यादा कीमती

Honesty: मासूम बनी मिसाल: खेल के मैदान में मिली अपनी टीचर की सोने की बाली लौटाई। उदयपुर के गिर्वा ब्लॉक के महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय सुरफलाया की कक्षा पांचवीं की छात्रा खुशी मीणा की कहानी हर दिल को छू रही है।

जयपुर

MOHIT SHARMA

Jul 20, 2025

Photo: Patrika Network
Photo: Patrika Network

मोहित शर्मा

Mahatma Gandhi School: जयपुर/उदयपुर . एक छोटी-सी बच्ची ने अपनी मासूमियत और ईमानदारी से न केवल एक बाली को उसके मालिक तक पहुंचाया, बल्कि पूरे समाज को सच्चाई का पाठ पढ़ाया। उदयपुर के गिर्वा ब्लॉक के महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय सुरफलाया की कक्षा पांचवीं की छात्रा खुशी मीणा की कहानी हर दिल को छू रही है। खेल के मैदान में मिली 23,000 रुपए की सोने की बाली को उसने बिना लालच के अपनी शिक्षिका को लौटा दिया। खुशी की यह छोटी-सी हरकत बड़ों के लिए बड़ा सबक है, जो बताती है कि सच्चाई और नैतिकता की कोई उम्र नहीं होती।

खेल के मैदान से शुरू हुई प्रेरणा की कहानी

एक दिन पहले स्कूल की शिक्षिका (प्रबोधक) पारुल माहेश्वरी की सोने की बाली कहीं खो गई थी। संस्था प्रधान भेरूलाल कलाल ने बच्चों से इसे खोजने की अपील की थी। अगले दिन, जब खुशी खेल के मैदान में थी, तो उसकी नजर संस्था प्रधान की कार के पास चमकती बाली पर पड़ी। उसने तुरंत उसे उठाया और बिना देर किए संस्था प्रधान को सौंप दिया। खुशी की इस ईमानदारी ने सभी को हैरान कर दिया। संस्था प्रधान ने उसकी जमकर तारीफ की, जबकि शिक्षिका पारुल ने स्कूल के सामने खुशी को धन्यवाद देकर उसका हौसला बढ़ाया। खुशी का चेहरा गर्व से खिल उठा।

कहानी स्कूल के अन्य बच्चों के लिए बनी प्रेरणा

खुशी के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर हैं, जो मेहनत और ईमानदारी से अपना जीवन चलाते हैं। उनकी बेटी ने भी वही मूल्य अपनाए। इस छोटी-सी उम्र में उसने दिखा दिया कि सच्चाई का रास्ता चुनना कितना अनमोल है। उसकी कहानी स्कूल के अन्य बच्चों के लिए प्रेरणा बन गई। संस्था प्रधान भेरूलाल ने बताया कि खुशी की इस हरकत ने न केवल स्कूल का माहौल बदला, बल्कि बच्चों में नैतिकता का बीज बोया।

सच्चाई का दीप जलाती मासूमियत

खुशी की कहानी आज के समय में एक मिसाल है, जब स्वार्थ और लालच की बातें आम हैं। उसने साबित किया कि छोटी उम्र में भी बड़ा दिल और मजबूत मूल्य हो सकते हैं। यह घटना हमें याद दिलाती है कि स्कूल न केवल किताबी ज्ञान का केंद्र हैं, बल्कि नैतिकता और इंसानियत सिखाने की पाठशाला भी हैं। खुशी की सादगी और ईमानदारी ने न सिर्फ एक बाली को उसके मालिक तक पहुंचाया, बल्कि समाज में सच्चाई का दीप जलाया। उसका यह कदम हर किसी को प्रेरित करता है कि सच्चाई का रास्ता ही सबसे उज्ज्वल होता है।