जयपुर। मां बनना हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत अहसास होता है। इसे और खूबसूरत बनाने के लिए एक महिला हर मुमकिन कोशिश करती है। कई बार हेल्थ कंडीशन की वजह से महिलाओं को कंसीव करने में कई तरह की परेशानी होती है।
डॉॅ. नीलू डोंगरे के मुताबिक कई बार देखा गया है कि महिलाएं कंसीव तो कर लेती हैं लेकिन खून की कमी, ब्लड प्रेशर सहित कई अन्य कारणों से उनमें हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी का खतरा बढ़ जाता है। लगभग 20 से 30 फीसदी महिलाओं में हाई रिस्क प्रेग्नेंसी का जोखिम होता है। इनमें पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाएं अधिक होती हैं।
क्या है हाई रिस्क प्रेग्नेंसी?
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी यानी मां और बच्चे से जुड़ी सेहत संबंधी समस्याओं का अधिक होना। यह रिस्क कई तरह के हो सकते हैं, जैसे- बच्चे का विकास धीमी गति से होना, समय से पहले लेबर पेन (प्रसव पीड़ा), खून न बनना, डायबिटीज आदि।
हाई रिस्क प्रेग्नेंसी से होने वाले जोखिम
समय पूर्व शिशु का जन्म होना
शिशु को हृदय संबंधी बीमारियां होना
गर्भपात होना
मां या बच्चे का बहुत ज्यादा या कम शारीरिक वजन
बच्चे में जन्मजात विसंगतियां,
गर्भवती की जान को जोखिम, प्रसव के बाद मां को सेप्सिस होना एनीमिया, मलेरिया और बुखार का जोखिम, जो जानलेवा भी हो सकते हैं।
इन महिलाओं को खतरा अधिक
जिन महिलाओं को सेहत से जुड़ी समस्याएं जैसे कैंसर, हाई ब्लड प्रेशर, किडनी से जुड़ी समस्या, अस्थमा, दिल से जुड़ी समस्या या फिर मिर्गी के दौरे पडऩा, एच.आई.वी या हेपेटाइटिस सी जैसा कोई संक्रमण हुआ हो, उन्हें खतरा अधिक होता है क्योंकि कई बार मां का शरीर सूज जाता है, जिससे बच्चे के शरीर में न्यूट्रिशन नहीं पहुंच पाते और पानी की कमी हो जाती है।
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम समय से पहले प्रसव के खतरे को बढ़ा सकता है। अक्सर महिलाओं को
गर्भवती होने से पहले पता ही नहीं होता है कि उनको डायबिटीज है।
गर्भावधि के दौरान होने वाले मधुमेह से रक्त में शर्करा बहुत अधिक हो जाती है, जो अजन्मे बच्चे के लिए अच्छी नहीं होती।
किडनी की बीमारी के साथ महिलाओं को अक्सर गर्भवती होने में कठिनाई होती है। थायराइड की समस्या भी महिला के गर्भधारण में मुश्किलें खड़ी करती है। अगर प्रेग्नेंसी हो भी जाए तो वह रिस्क जोन में ही रहती है।
जो महिलाएं धूम्रपान, एल्कोहल या अन्य किसी तरह के नशीले पदार्थ का सेवन करती हैं, उनकी प्रेग्नेंसी भी हाई रिस्क में शामिल होती है।
ऐसे करें बचाव
रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट्स जैसे जंक फूड, सफेद ब्रेड खाने से परहेज करें।
दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस, ज्वार, बाजरा, गेहूं, कॉर्न आदि का सेवन करें। ये फाइबर का बेहतर स्रोत होते हैं, जिससे आपको कब्ज, हेमोरॉएड्स जैसी समस्याएं नहीं होंगी।
डाइट में ताजे फल, हरी सब्जियां शामिल करें। दूध, दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे दही, पनीर का सेवन करें। इससे हड्डियां स्वस्थ रहेंगी। साथ ही, शिशु की हड्डियों का विकास भी सही से होगा।
शरीर को हाइड्रेटेड रखने की लिए तरल पदार्थ जैसे पानी, जूस, नारियल पानी जितना हो पीएं।
भरपूर नींद लें। तनाव से दूर रहें। स्मोकिंग, एल्कोहल से दूर रहें। समय निकाल कर थोड़ा वॉक करें। सीढिय़ां कम से कम चढ़ें।
अगर किसी खाद्य से एलर्जी है, तो उसका सेवन तुरंत बंद करें। भोजन में चीनी व नमक की मात्रा संतुलित करें। अधिक तैलीय, मसालेदार, पैक्ड व जंक फूड खाने से परहेज करें।
चाय या कॉफी का सेवन कम से कम करें।
Published on:
11 Apr 2024 04:38 pm