जयपुर। राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (आरजीएचएस) को वित्त विभाग से स्वास्थ्य विभाग को सौंपे जाने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि पेंशनर्स और सरकारी कर्मचारियों को इलाज में राहत मिलेगी।
लेकिन जमीनी हालात अब भी जस के तस हैं। कुछ निजी अस्पतालों की मनमानी और आरजीएचएस की जटिल प्रक्रियाएं बुजुर्ग पेंशनर्स के लिए यह योजना ‘सहूलियत’ नहीं, ‘सजा’ बनती जा रही है।
राजधानी के कुछ निजी अस्पतालों में बुजुर्ग पेंशनर्स को ओपीडी के लिए सुबह 8:30 बजे से पहले टोकन के लिए लाइन में लगना पड़ता है। 70 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों को भी कतार में खड़ा रहना पड़ता है-वह भी खुद, किसी सहायक के बिना। फिर 9 बजे पर्ची कटवाने और 11 बजे डॉक्टर से परामर्श पाने के लिए और प्रतीक्षा। नकद भुगतान करने वाले मरीजों को तरजीह दी जाती है, जबकि आरजीएचएस कार्डधारियों के साथ भेदभाव किया जाता है।
एमआरआइ, सिटी एंजियोग्राफी जैसी जांचें तब तक नहीं होतीं, जब तक मरीज को अस्पताल में भर्ती न कर लिया जाए। योजना में बिना भर्ती हुए सेकंडरी इलाज का भुगतान नहीं होता, और अस्पताल भी इसे मानने को तैयार नहीं होते।
कई अस्पतालों में आरजीएचएस मरीजों की सीमा तय है। कुछ डॉक्टरों को 5 से 10 आरजीएचएस मरीज ही देखने की अनुमति दी गई है। नकद भुगतान करने वाले मरीजों को डॉक्टर के सामने बैठाना प्राथमिकता बन चुका है क्योंकि वहीं ‘मुनाफा’ है।
स्वास्थ्य मंत्री और विभागीय अधिकारी लगातार योजना में सुधार की बात कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत पेंशनर्स की पीड़ा बयान कर रही है। बुधवार को मानसरोवर स्थित एक निजी अस्पताल में गए पेंशनर ने कहा कि उन्होंने जीवनभर सरकार को सेवा दी, अब इलाज के लिए हाथ फैलाना पड़ रहा है।
हर बार नया नियम, नया फार्म, नया चक्कर… शरीर बीमार है और तंत्र संवेदनहीन… 65 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक ने बताया कि पर्ची कटवाने में ही उनके ढाई घंटे लग गए, और वह भी खुद लाइन में लगकर। यह तो योजना के नाम पर सजा देना जैसा है।
Published on:
07 Aug 2025 07:31 am