जबलपुर . जिले के सिहोरा क्षेत्र में ऐसी कई खदाने हैं जिनमें तय सीमा से बाहर खनन किया गया है। खनिज विभाग से अनुमति मिलने के बाद खदान संचालक मनमानी पर उतर आते हैं। इसका नुकसान शासन को राजस्व के रूप में होता है। संचालक केवल उतनी मात्रा की रॉयल्टी चुकाता है जितनी मात्रा स्वीकृत है। अवैध खनन वाली राशि उसके जेब में जाती है।
खदानों की नियमित जांच कम होती है। जांच का अधिकार खनिज विभाग के साथ राजस्व विभाग के अधिकारियों के पास है। जांच नहीं होने का बड़ा नुकसान पर्यावरण को होता है। जो माइनिंग प्लान स्वीकृत होता है, उसमें हर चीज का ध्यान रखा जाता है। खदान कहां पर िस्थत है। वहां कितने पेड़ पौधे हैं। भूमि राजस्व विभाग की है या वन विभाग की। इन तमाम पहलुओं की पड़ताल के बाद अनुमति दी जाती है।
खेत और सड़क को मशीनों से रौंदा
मशीनों से खुदाई कर खनिज को निकाला जाता है। खदान संचालक नियम तोड़कर वर्षों पुराने पेड़ काट डालते हैं। यदि खदान के किनारे से कच्ची एवं पक्की सड़क है तो उसे भी बंद करा दिया जाता है। कई बार किसानों के खेतो तक मशीनें पहुंच जाती हैं। इससे विवाद भी होता है। इसके बाद भी खनिज विभाग इनकी नियमित जांच नहीं करता है।
रॉ मटैरियल को किया डम्प
सिहोरा और मझौली क्षेत्र में कुछ खदानों के आसपास रॉ मटैरियल को डम्प किया जा रहा है। उसके बडे़ पहाड़ बन गए हैं। कुछ जगहों पर खाली खेत में जबर्दस्ती कब्जा कर डंपिंग प्वाइंट बना दिया जाता है। आसपास लगी फसलें इससे प्रभावित होती हैं। खड़ी फसलों के ऊपर वाहनों के कारण उड़ने वाली धूल की परत चढ़ जाती है। जब फसल की कटाई होती है तो इसका नुकसान किसान को होता है।
Published on:
25 Dec 2023 12:20 pm