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ऑनलाइन गेम में फंसा तो 7 साल के मासूम ने कर ली खुदकुशी, परिजनों ने की आंखें दान

Innocent Suicide Case Indore: मध्य प्रदेश के इंदौर का मामला, मां के डेबिट कार्ड से खर्च किए थे 3000 रुपए, इसके बाद से तनाव में था मासूम...

7 years innocent suicide trapped in online game
ऑनलाइन गेम के चक्कर में 7 साल के मासूम ने कर ली खुदकुशी.(image source: patrika)

Innocent Suicide Case Indore: ऑनलाइन गेम में पैसा लगाकर फंसे सातवीं के छात्र आकलन (13) पिता अंकेश जैन ने फंदा लगाकर जान दे दी। उसने मां के डेबिट कार्ड से गेम पर 3000 रुपए खर्च कर दिए थे। इसके बाद से तनाव में था कि माता-पिता डांटेंगे।

परिजन उसे हॉस्पिटल लेकर गए, जहां डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया। परिजन ने मुस्कान ग्रुप के माध्यम से उसके नेत्र दान कर दिए। एमआइजी थाना टीआइ सीबी सिंह के अनुसार अनुराग नगर के अंकेश जैन के बेटे आकलन ने गुरुवार रात फंदा आत्मघाती कदम उठाया। शुरुआती जांच में पता चला कि नामी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र ने शाम को पढ़ाई की और दूसरी मंजिल स्थित कमरे में चला गया। उसके कमरे के पास दादा-दादी और चाचा का भी कमरा है।

रात करीब 8.30 बजे कमरे से आई स्टूल गिरने की आवाज

रात करीब 8.30 बजे उसके कमरे से स्टूल गिरने की आवाज आई। दादा पहुंचे तो देखा पोता फंदे पर है। परिवार के सदस्य उसे पास के अस्पताल लेकर पहुंचे। मर्ग कायम किया है। बताते हैं, उसने गेम लेवल अप करने के लिए कई बार 50 तो डायमंड की खातिर कई बार 400 रुपए ऑनलाइन पेमेंट किया। इस तरह उसने कुल 3000 रुपए ऑनलाइन गेम में लगा दिए। इससे वह अंदर-ही अंदर डर गया था। पुलिस ने बताया, आकलन संयुक्त परिवार में रहता था। इसमें मां, पिता, छोटा भाई, दादा-दादी, चाचा-चाची साथ रहते हैं। पिता का लसूडिय़ा और छोटी ग्वालटोली में ऑटो पार्ट्स का कामकाज है।

बच्चों को समझने वाला घर चाहिए

यह मामला बच्चों की भावनात्मक परिपक्वता, आत्मसम्मान और पारिवारिक संवाद की गुणवत्ता पर सवाल उठाता है। ऑनलाइन गेम्स न केवल तेज डोपामिन रिवार्ड सिस्टम से बच्चे को जोड़ते हैं बल्कि जीतहार और रिवॉर्ड को उनकी पहचान, आत्मसम्मान से जोड़ देते हैं। जब कोई बच्चा पैसे हारता है तो, उसमें 'मैं फेल हो गया' जैसी आत्मग्लानि भी होती है। बच्चों से भरोसे का रिश्ता जरूरी है। उन्हें गलती के बाद भी सुनने-समझने वाला घर चाहिए। पैसे खर्च करने या गलती करने पर गुस्से के बजाय चर्चा का वातावरण बनाएं।

- डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक