5 अगस्त 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

हर दिन 68,000 माइक्रो प्लास्टिक निगल रहे हम, एक्सपर्ट से जानिए कितना है ये खतरनाक

Microplastics in Human Body: एक नई स्टडी के अनुसार, हम हर दिन 68,000 माइक्रोप्लास्टिक कण सांस के जरिए ले रहे हैं। जानिए घर और कार की हवा में मौजूद इस खतरे से अपने स्वास्थ्य को कैसे बचाएं और इसके खतरनाक प्रभावों को समझें।

भारत

Rahul Yadav

Aug 01, 2025

Microplastics in Human Body
Microplastics in Human Body (Image: Gemini)

Microplastics in Human Body: क्या आपको लगता है कि घर या कार के अंदर की हवा बाहर के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित होती है? अगर हां, तो एक नई स्टडी आपके होश उड़ा सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि हर इंसान रोजाना औसतन 68,000 माइक्रो प्लास्टिक कण सांस के जरिए अपने शरीर में ले रहा है और यह प्रदूषण हमारे ही घरों और कारों की हवा में मौजूद है।

फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ टूलूज के वैज्ञानिकों ने पहली बार घरों और कारों के अंदर की हवा का विश्लेषण किया और नतीजे चौंकाने वाले रहे हैं ।

स्टडी में क्या पाया गया?

अध्ययन के दौरान 16 स्थानों से हवा के सैंपल लिए गए, कुछ अपार्टमेंट्स से और कुछ कारों के अंदर से थे। घरों की हवा में प्रति घन मीटर औसतन 528 माइक्रोप्लास्टिक कण मिले। जबकि कारों की हवा में यह संख्या लगभग 2,238 कण प्रति घन मीटर पाई गई। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि एक व्यक्ति हर दिन करीब 3,200 मध्यम आकार के और 68,000 सूक्ष्म आकार के प्लास्टिक कण सांस के साथ शरीर में ले रहा है।

कितना खतरनाक है यह प्लास्टिक?

माइक्रो प्लास्टिक में ऐसे रसायन होते हैं जो शरीर के अंदर जाकर फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, सूजन पैदा कर सकते हैं और इम्यून सिस्टम को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा ये पाचन तंत्र, हार्मोनल बैलेंस और गट हेल्थ पर भी असर डाल सकते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, ये सूक्ष्म कण फेफड़ों के गहरे हिस्सों तक पहुंच सकते हैं और लंबे समय तक शरीर में बने रह सकते हैं। इससे भविष्य में हार्ट डिजीज, कैंसर और सांस की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।

इनडोर एयर क्वालिटी अब नया खतरा

अब तक वायु प्रदूषण की चर्चा आमतौर पर बाहरी वातावरण जैसे ट्रैफिक, फैक्ट्रियों और धूल-मिट्टी को लेकर होती थी। लेकिन यह अध्ययन बताता है कि घर और कार की बंद हवा में भी माइक्रोप्लास्टिक की ज्यादा मात्रा मौजूद हो सकती है।

प्लास्टिक से बनी घरेलू चीजें जैसे कारपेट, सोफा, पर्दे, कपड़े, पैकेजिंग मटेरियल और साफ-सफाई के प्रोडक्ट धीरे-धीरे टूटते हैं और सूक्ष्म प्लास्टिक कण हवा में छोड़ते हैं जिन्हें हम अनजाने में हर दिन सांस के जरिए भीतर ले रहे हैं।

बचाव के क्या उपाय हैं?

शोधकर्ता मानते हैं कि भले ही अभी इसके सभी दीर्घकालिक प्रभाव पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं लेकिन एहतियात बरतना जरूरी है।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि घरों में नियमित रूप से धूल झाड़ना और वैक्यूम क्लीनिंग करनी चाहिए। HEPA फिल्टर वाले एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही, प्लास्टिक आधारित फर्नीचर और कपड़ों से बचना, प्लास्टिक पैकेजिंग को कम करना और कार को अच्छी तरह वेंटिलेट रखना भी मददगार हो सकता है।

यह स्टडी साफ तौर पर दिखाती है कि माइक्रोप्लास्टिक अब सिर्फ समुद्र या मिट्टी में नहीं है यह हमारे सबसे निजी स्थानों, घर और कारों की हवा में घुल चुका है। हम हर दिन इसे सांसों के साथ अंदर ले रहे हैं और फिलहाल इस खतरे से पूरी तरह बच पाना मुश्किल है।

हालांकि, इस पर अभी और रिसर्च की जरूरत है लेकिन शुरुआती संकेत गंभीर हैं। ऐसे में यह समय की मांग है कि हम अपने इनडोर वातावरण की गुणवत्ता पर ध्यान दें और प्रदूषण के इस नए रूप से खुद को जितना संभव हो बचाने की कोशिश करें।