Ear fungal infection treatment : कान मे फंगल इन्फेक्शन होना एक बहुत ही आम बात है जिससे परेशान होकर कई पेशेंट ओपीडी में हमारे पास आते हैं। आज हम बात करेंगे इसी दिक्कत के बारे में जिसे मेडिकल भाषा में ऑटोमाइकोसिस भी कहते हैं। इंसानी कान तीन भागों में बंटा हुआ है: आउटर इयर यानी कि बाहरी कान, मिडल इयर यानी कान का मध्य भाग व इनर इयर यानी अंदरूनी कान जो की सुनने के साथ-साथ शरीर का बैलेंस बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। जयपुर के सीनियर ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. भीम सिंह पांडेय बताते हैं कि फंगल इंफेक्शन (Fungal Infection) यानी ऑटो माइकोसिस आउटर इयर का इंफेक्शन है जिसमें फंगस इयर कैनाल के किसी भी हिस्से में जमा हो सकती है और चमड़ी को संक्रमित कर सकती है।
पहला सुपरफीशियल टाइप जो की सबसे कोमन टाइप है, इसमें फंगस कैनाल की स्किन को इनफैक्ट करता है और दूसरा इनवेसिव टाइप जो की रेयर टाइप का इंफेक्शन है जिसमें कान की हड्डी जिसे टेंपोरल बोन कहते हैं प्रभावित होती है। अब बात करते हैं ऑटो माइकोसिस किन परिस्थितियों में कौमन होता है।
डॉ. भीम सिंह पांडेय ने कहा, ऑटो माइकोसिस उन लोगों में ज्यादा आम है जो या तो गर्म या फिर ज्यादा नमी वाली जगह में रहते हैं। बरसात के मौसम में हवा में नमी ज्यादा होती है और इसी वजह से हमारे इयर कैनाल में भी नमी ज्यादा होती है और इसकी वजह से कान में फंगल इन्फेक्शन (Fungal Infection) का खतरा बढ़ जाता है। यदि नहाते हुए या स्विमिंग करते हुए कान में पानी चला जाए तो भी कान में फंगस लग सकता है। यदि किसी मरीज का कान बहता है तो पस या मवाद की वजह से कान गीला रहता है जिसकी वजह से कान में फंगल इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। यदि मरीज कान में खुजली करने के लिए इयर बड्स, माचिस की तीली या किसी बाहरी वस्तु का इस्तेमाल करता है तो भी उसे कान में फंगल इन्फेक्शन का खतरा रहता है।
डॉ. भीम सिंह पांडेय ने कहा जिन लोगों को डायबिटीज है उन लोगों में भी फंगल इन्फेक्शन का खतरा कहीं ज्यादा होता है। कान के परदे में छेद होने की वजह से भी इयर कैनाल में नमी बनी रहती है जिसकी वजह से भी फंगल इन्फेक्शन (Fungal Infection) का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे पेशेंट जिन में डैंड्रफ है या जिन्हें सोरियाएसिस नाम की चमडी़ की बीमारी है उन में भी फंगल इन्फेक्शन का खतरा ज्यादा रहता है। देखा गया है यदि कोई मरीज बिना डॉक्टरी सलाह के लंबे समय से कान में एंटीबायोटिक या स्टेरॉयड इयर ड्रॉप्स का इस्तेमाल कर रहा है तो उस में भी कान के फंगल इन्फेक्शन का खतरा सामान्य से कहीं अधिक होता है।कान का फंगल इन्फेक्शन ज्यादातर दो तरह की फंगस करती है उनका नाम है एस्पेरगिलोसिस तथा कैंडिडा एल्बीकेंस।
कान में खुजली होना, बहुत ज्यादा चुभने वाला दर्द होना, कान से रेशा या मवाद बहना, कान में भारीपन महसूस होना और कम सुनाई देना ऑटोमाइकोसिस के मेन लक्षणों में आता है। तो इस बीमारी को डायग्नोसिस कैसे किया जाता है। कोई भी ईएनटी सर्जन आपके कान की ऑटोस्कॉपी करके बहुत आसानी से कान में फंगस या ऑटोमाईकोसिस होने की पुष्टी कर देता है इसमें कोई भी बड़ी जांच की जरूरत नहीं पड़ती। तो अब बात करते हैं ऑटोमाइकोसिस का इलाज कैसे किया जाता है। फंगस के इलाज में पहला कदम होता है ईएनटी सर्जन द्वारा कान में पड़ी फंगस को अच्छे से साफ करना।
डॉ. भीम सिंह पांडेय ने कहा सफाई के बाद मरीज को एंटी फंगल इयर ड्रॉप दी जाती है जो दिन में दो से तीन बार कान में डालनी होती है और जिसका कोर्स 5 से 7 दिनों के लिए चलता है। जरूरत के अनुसार दर्द या खुजली के लिए खाने की दवाइयां भी मरीज को दी जाती है। इस इलाज के दौरान मरीज को ध्यान रखना होता है कि वह स्विमिंग ना करें या बारिश में ना भीगे। मरीज को अपना कान बिल्कुल सूखा रखना होता है और ध्यान रखना है की नहाते हुए काम में पानी न जाए इसके लिए कोकोनट ऑयल, बोरोलीन बोरोप्लस जैसी तेल या क्रीम मैं लिपटी हुई रुई लगा सकता है। ऐसा इसलिए करना होता है क्योंकि सूखी रूई पानी सोख कर अंदर रिस सकती है। यहां यह बात ध्यान रखने योग्य है की रूई को चिकना करने के लिए सरसों के तेल का प्रयोग ना करें क्योंकि अमूमन सरसों के तेल में आरजीमोन सीड ऑयल की मिलावट होती है जिसकी एलर्जी जिंदगी भर भी रह सकती है।
डॉ. भीम सिंह पांडेय ने कहा , मरीज को ध्यान रखना है कि वह अपने कान को किसी भी बाहरी वस्तु जैसे कि ईयर बड, माचिस की तिल्ली, गाड़ी की चाबी और यहां तक की गंदे हाथों से भी ना खुजाऐं। ईएनटी सर्जन द्वारा दी गई दवाइयों का पूरा कोर्स करें और कोर्स खत्म होने पर डॉक्टर को फिर से जरुर दिखाएं। डॉक्टर को फिर से दिखाना इसलिए जरूरी होता है कि फंगल इन्फेक्शन कई बार बहुत जिद्दी होता है और कई बार सफाई करने पर भी नहीं जाता क्योंकि फंगस के छोटे से स्पोर में फंगस को दोबारा पैदा करने की क्षमता होती है।
अब बात करते हैं फंगल इंफेक्शन (Fungal Infection) से बचने के उपाय के बारे में डॉ. पांडेय ने कहा इस बात का ध्यान रखें कि स्विमिंग करते वक्त ईयर प्लग्स का इस्तेमाल जरूर करें ताकि कान में पानी न जा पाए। डायबिटीज के मरीज ब्लड शुगर पर कंट्रोल रखें। कान में बिना डाक्टरी सलाह के किसी भी प्रकार की इयर ड्रॉप्स ना डालें। मरीज कान को ईयर बड या माचिस की तिल्ली और यहां तक की गंदे हाथों से ना खुजाएं। नहाने के बाद कान को सुखाने के लिए एक उचित दूरी से हेयर ड्रायर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
Published on:
03 Aug 2025 12:25 pm