WaterHarvesting शहर के समाधिया कॉलोनी, शताब्दीपुरम, डीडी नगर, आदित्यपुरम, दर्पण कॉलोनी, थाटीपुर समेत कई इलाके में मानसून सीजन में भी जलसंकट छाया हुआ है। वर्तमान में शहर में एक दिन छोड़कर ही जल सप्लाई हो रही है, ऐसे में जिन घरों में पानी की सप्लाई होती है वहां भी पूरे बर्तन भी नहीं भर पा रहे हैं। वही मई-जून की भीषण गर्मी में इन इलाकों में बड़ी संख्या में जलस्त्रोत भी सूख गए थे और ग्वालियर भी सेमी क्रिटिकल जोन में चला गया था। साथ ही शहर में भारी जलसंकट की स्थिति बनती देखी।
ककैटो पेहसारी से पानी लिफ्ट करने के लिए 18 करोड़ के टेंडर भी लगाए गए थे, लेकिन इसके बावजूद भी वर्षा जल सहेजने की कभी भी पहल नहीं की गई। नतीजा मानसून सीजन की शुरुआती बारिश में शताब्दीपुरम, डीडी नगर, आदित्यपुरम, दर्पण कॉलोनी, थाटीपुर, एबी रोड गोलपहाड़िया, बिरला नगर, जलालपुर, सिटी सेंटर सहित कई स्थानों पर अब तक हुई बारिश में करीब 2 अरब लीटर से ज्यादा पानी व्यर्थ बह गया। जानकारों के अनुसार शहर में स्थित भवनों की छत पर छोटी-छोटी वॉटर हार्वेस्टिंग यूनिट स्थापित करके भूगर्भ में वृहद स्तर पर वर्षा जल पहुंचाया जा सकता है।
1000 वर्गफीट के एक घर में रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इंस्टाल होता है तो उससे 01 लाख लीटर पानी संरक्षित होता है।
यदि इस साल बारिश के पानी को संरक्षित कर लिया जाता तो शहरवासियों को तिघरा पर कम निर्भर रहना पड़ता। बिजली के अतिरिक्त करोड़ों रुपए के बिल की मार भी नहीं झेलनी पड़ती। साथ ही निगम को राहत तो शहर को जलसंकट से मुक्ति मिल जाती है। यदि जल संरक्षण होता तो शहर के पास दो माह का पानी सरप्लस में होता। रैन वाटर हार्वेस्टिंग होने से शहर में हुए जलभराव के हालत भी नहीं बनते। शहर से बहते हुए पानी को एक स्थान पर निगम कर चंबल में पहुंचाया जा सकता है अथवा तिघरा में छोड़ा जा सकता था।
नगर निगम में भवन अनुज्ञा के साथ सिस्टम अनिवार्य किया गया है। भवन अनुज्ञा शुल्क में वाटर हार्वेस्टिंग का शुल्क भी लिया जाता है। यह राशि रिफंडेबल होती है, यानी सिस्टम लगवाने के बाद निगम को सर्टिफिकेट देने पर शुल्क मिल सकता है, लेकिन अनुमति लेने के बाद न लोगों ने रुचि दिखाई और न ही भवन शाखा के जिम्मेदार अफसरों ने। इसके चलते बीते पांच साल से शहर में कोई भी वाटर हार्वेस्टिंग नहीं हुई। इसका करीब चार करोड़ रुपए निगम में जमा भी है।
17 लाख की आबादी वाले शहर में 3 लाख 19 हजार संपत्तियां हैं। लेकिन बारिश के पानी को सहेजने के लिए नगर निगम की ओर से अब तक कोई ठोस प्लानिंग नहीं की गई है। पांच साल में कहीं भी वाटर हार्वेस्टिंग नहीं कराई गई है। जबकि पूर्व में 1000 ही वाटर हार्वेस्टिंग शहर में हुई हैं। इससे बारिश का करोड़ों लीटर पानी व्यर्थ बहकर नदी-नालों में चला गया। जबकि इसे बचाकर हम जल स्तर बढ़ा सकते हैं और आने वाले समय में पानी के संकट को कम कर सकते थे। हालांकि नगर निगम की ओर से वाटर हार्वेस्टिंग के लिए अभी टेंडर लगाए गए है, जबकि यह कार्य मानसून शुरू होने से पहले ही कर लेना चाहिए था।
Published on:
15 Jul 2024 05:59 pm