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मंडला आर्ट, मिथकीय पात्रों और संस्कार गीतों से सजा गोरखपुर पुस्तक महोत्सव का चौथा दिन

एनबीटी की ओर से उत्तर प्रदेश सरकार और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित इस गोरखपुर पुस्तक मेले में 100 से अधिक प्रकाशक और 200 पुस्तक स्टॉल शामिल हैं।

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फोटो सोर्स: पत्रिका, पुस्तक मेले में हुए बच्चों के अनेक कार्यकम

एनबीटी की ओर से दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में चल रहे नौ दिवसीय गोरखपुर पुस्तक महोत्सव 2025 के चौथे दिन विभिन्न विद्यालयों के हजारों विद्यार्थियों ने पुस्तक मेला का भ्रमण किया और अपनी पसंद की किताबें खरीदीं।

कहानीकार शालिनी बंसल ने युवा श्रोताओं को मोहित कर दिया

पुस्तक महोत्सव के चौथे दिन की शुरुआत बाल मंडप में बच्चों की गहमागहमी से हुई। यहां बच्चों ने मंडला आर्ट के बारे में जाना। पंडाल में उपस्थित बच्चों ने अपनी कल्पनाओं में रंग भरते हुए कई आकर्षक मंडला चित्र बनाए। इसमें 22 स्कूलों के लगभग 1200 विद्यार्थियों हिस्सा लिया ने बच्चों के कोने को मज़े, हंसी और उच्च उत्साह से भर दिया! दिन की शुरुआत कहानीकार शालिनी बंसल ने की, जिन्होंने अपने आकर्षक कथा के साथ युवा श्रोताओं को मोहित कर दिया, जिसमें सुनेहरी नामक एक मित्रवत और सहायक पक्षी की कहानी थी। कल्पना के पंखों पर ऊंची उड़ान भरते हुए, छोटे बच्चों ने दोस्ती और दया भाव का संदेश सीखा।

शुभंकर चीता से मिलकर बच्चों का उत्साह चरम पर

"मंडला आर्ट वर्कशॉप" के अगले सत्र में, छात्रों ने जटिल ज्यामितीय पैटर्न में शानदार रंग भरे। इसके बाद राष्ट्रीय ई-पुस्तकालय का एक संक्षिप्त परिचय दिया गया, जिसने छात्रों को डिजिटल पुस्तकों की दुनिया को जानने-समझने के लिए प्रेरित किया। इसके शुभंकर चीता से मिलकर बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था।

बच्चों को खुद की कहानियां लिखने के लिए प्रेरित किया गया

इसके बाद शालिनी बंसल द्वारा एक इमर्सिव और आकर्षक "स्टोरी राइटिंग सेशन" के साथ हुआ, जहां छात्रों को रचनात्मक रूप से सोचने, स्वतंत्र रूप से बातचीत करने और अपने स्वयं के मूल पात्रों, कहानियों और परिदृश्यों को तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया गया - उन्हें न केवल कहानियों को पढ़ने के लिए, बल्कि अपनी खुद की कहानियां लिखने के लिए भी प्रेरित किया गया।

सर्वभाषा ट्रस्ट ने दी प्रो रामदरश मिश्र को श्रद्धांजलि

102 वर्ष का लंबा और रचनात्मक रूप से समृद्ध जीवन जीने वाले वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार प्रो रामदरश मिश्र की स्मृति में सर्वभाषा ट्रस्ट ने एक स्मृति सभा का आयोजन किया। बतौर मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय की कुलपति पूनम टण्डन ने श्रद्धांजलि देते हुये रामदरश जी के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला तथा उनकी कविता का वाचन किया। शहरनामा के रचयिता वेद प्रकाश पांडेय जी ने रामदरश जी की सरलता, साहित्यिक सौष्ठव और लिखने के प्रति उनके समर्पण से जुड़े संस्मरण साझा किया।

लेखक मंच पर सुनाई दिए मिथक और संवेदनाओं के स्वर

लेखक मंच पर आयोजित संवाद सत्र ‘मिथकों में कथाएं’ में जाने-माने कवि -आलोचक अष्टभुजा शुक्ल और मैं उपन्यासकार-अनुवादक आशा प्रभात ने संवाद किया। इस सत्र का समन्वयन प्रो आमोद कुमार राय कर रहे थे। अष्टभुजा शुक्ल जी ने जहां मिथकों की पाश्चात्य अवधारणा पर बात की, वहीं आशा प्रभात जी ने लोक का हवाला देते हुए मंदार पर्वत, देव, असुर और समुद्र मंथन के अंतर्निहित संदेश पर गहन बातचीत की।

साहित्य हमेशा शोषित के पक्ष में खड़ा होता है

वहीं अंतिम सत्र लेखक से मिलिए में जाने-माने साहित्यकार-पत्रकार डॉ. दयानंद पांडेय से उनकी रचनात्मकता पर अमित कुमार ने संवाद किया। आप कब लिखते हैं के प्रश्न पर श्री पांडेय ने कहा कि जैसे प्रेम करने का कोई निश्चित समय नहीं होता, उसी तरह मेरे लिए भी लिखने का अलग से कोई समय नहीं है। अपने वक्तव्य में उन्होंने आगे कहा कि साहित्य हमेशा शोषित के पक्ष में खड़ा होता है और संवेदनाओं की बात करता है।

संस्कार गीतों से सजी सांस्कृतिक संध्या

सांस्कृतिक संध्या संस्कार गीतों के माधुर्य में सराबोर रही। डॉक्टर. राकेश श्रीवास्तव के निर्देशन में पूर्वांचल के विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले पारंपरिक लोक गीतों की मनभावन प्रस्तुति की गई। जिसमें शिवेंद्र पांडे सूत्रधार की भूमिका में रहे और साथियों ने सोहर, चैत, विवाह गीत, विदाई गीत आदि प्रस्तुत किए।

दो भावपूर्ण नाट्य कृतियाों का प्रदर्शन

सांस्कृतिक कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति में प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रभावशाली प्रस्तुति दी। दो भावपूर्ण नाट्य कृतियाों , जिनका शीर्षक "उनके हिस्से का प्रेम" एवं "मन्नू की बेटियाँ" था को प्रो. देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में अमिताभ श्रीवास्तव, अमित सक्सेना, प्रकाश झा , गौरी देवल , अदिति आर्या, सहज हरजाई और रचिता वर्मा ने प्रस्तुत किया। प्रकाश परिकल्पना श्री राघव प्रकाश मिश्रा जी की रही।


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