गाजियाबाद के गोविंदपुरम इलाके में आईबी अधिकारी अविनाश और उनकी बहन अंजलि की आत्महत्या ने पूरे इलाके को स्तब्ध कर दिया है। यह एक साधारण आत्महत्या की खबर नहीं, बल्कि एक दिल दहला देने वाली दास्तान है, जिसे अंजलि ने अपनी डायरी के 22 पन्नों में कैद किया है। उनके लिखे गए आखिरी शब्द एक पिता के नाम आखिरी पुकार हैं, जिसमें दर्द, गुस्सा और विश्वासघात की गहरी टीस है।
अंजलि ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत का सीधा जिम्मेदार अपने पिता सुखवीर सिंह और सौतेली मां रितु को ठहराया है। उन्होंने लिखा है, "हमारी मौत के जिम्मेदार मिस रितु और मिस्टर सुखवीर सिंह के अलावा और कोई नहीं है।"
यह सिर्फ एक आरोप नहीं, बल्कि सालों के मानसिक उत्पीड़न और उपेक्षा का लेखा-जोखा है। अंजलि ने अपने पिता से कहा, 'सुखवीर सिंह आपको पापा कहना अच्छा नहीं लगता। तुम्हें अधिकार नहीं है मेरे शव को छूने का।' यह उन बच्चों की आखिरी गुहार है, जिन्हें उनके पिता ने, उनके शब्दों में, 'अपनी दूसरी शादी के लिए अपनी ही खुशियों का गला घोंट दिया।' अंजलि ने अपनी चिता को मुखाग्नि देने का अधिकार भी अपने पिता से छीन लिया और यह जिम्मेदारी अपने दोस्त महिम को सौंपी।
यह कहानी सिर्फ इस एक घटना की नहीं है, बल्कि इसका संबंध 16 साल पहले हुई एक और आत्महत्या से है। भाई-बहन के मामा देवेंद्र सिंह ने पुलिस को बताया कि 2007 में उनकी बहन और अविनाश-अंजलि की मां कमलेश ने भी जहरीला पदार्थ खाकर आत्महत्या कर ली थी। आरोप है कि कमलेश की मौत भी उनके पति सुखवीर सिंह के प्रेम संबंधों और मानसिक उत्पीड़न का विरोध करने के कारण हुई थी। कमलेश की मौत के एक साल बाद ही सुखवीर सिंह ने अपनी प्रेमिका रितु से शादी कर ली।
मामा के अनुसार, सौतेली मां के आने के बाद बच्चों का मानसिक शोषण शुरू हो गया, जिसकी वजह से अविनाश और अंजलि को अपनी मौसी के घर जाकर रहना पड़ा। कई सालों बाद जब वे घर लौटे, तो शोषण फिर से शुरू हो गया। इस बार उत्पीड़न इतना बढ़ गया कि उन्हें धमकी दी गई कि 'जिस तरह तुम्हारी मां की मौत हुई है, उसी तरह तुम भी मर जाओ तो अच्छा है।'
एक तरफ जहां सुसाइड नोट में पिता को क्रूर बताया गया है, वहीं पोस्टमार्टम हाउस पर सुखवीर सिंह जमीन पर टकटकी लगाए बैठे, अपने दर्द को बयां करते दिखे। उन्होंने कहा, 'मेरा तो सबकुछ लुट गया… जिस औलाद के लिए दूसरी पत्नी से संतान उत्पन्न नहीं की, आज उन्होंने ने ही समाज में मुझे कलंकित कर दिया।'
सुखवीर सिंह ने कहा कि उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए दूसरी शादी की और दूसरी पत्नी को भी संतान पैदा न करने के लिए मनाया। उनका कहना था कि उन्होंने बच्चों में अपना भविष्य देखा, लेकिन उन्हें पता नहीं चला कि उनकी जिंदगी में क्या चल रहा था। एक पिता के रूप में उनका यह बयान, सुसाइड नोट में लिखे गए आरोपों से बिलकुल उलट है, जो इस त्रासदी को और भी जटिल बना देता है।
फिलहाल, पुलिस ने भाई-बहन के मामा की तहरीर पर केस दर्ज कर लिया है और मामले की जांच कर रही है। यह जांच दोनों की मौत के साथ-साथ उनकी मां की 2007 में हुई मौत के आरोपों पर भी की जाएगी। लेकिन तब तक, 22 पन्नों का वह सुसाइड नोट दो मासूम जिंदगियों की चीख बनकर, समाज की खोखली दीवारों पर एक गहरा सवाल छोड़ गया है।
Published on:
02 Aug 2025 07:18 pm