नई दिल्ली। देश की आर्थिक वृद्धि दर जून तिमाही में छह साल के निचले स्तर पर जाने के बाद अब आने वाली तिमाहियों में धीरे-धीरे सुधरेगी। हालांकि यह पहले ही अपेक्षा कमजोर रह सकती है।
फिच सॉल्यूशंस ने सोमवार को अपनी एक रिपोर्ट में चालू वित्त वर्ष के लिए देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटा दिया है। पहले यह 6.8 फीसदी थी जिसे अब 6.4 फीसदी कर दिया गया है।
खपत और मांग कम हाेने से आर्थिक वृद्धि दर में कमी
देश की वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 2019-20 की पहली तिमाही में पांच फीसदी रही है। वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में यह आंकड़ा 5.8 फीसदी था। इस तेज गिरावट की बड़ी वजह निजी उपभोग की वृद्धि दर गिरना है।
रेटिंग एजेंसी फिच सॉल्युशंस ने देश की आर्थिक वृद्धि पर अपने बयान में कहा, "फिच सॉल्युशंस में हमारा विश्वास है कि आर्थिक वृद्धि लगभग अपने निचले स्तर को छू चुकी है और आने वाली तिमाहियों में यह सुधरना शुरू होगी। हालांकि बाहरी क्षेत्र और निजी उपभोग पर जारी दबाव बना रह सकता है। अब हमें उम्मीद है कि यह सुधरकर पहले से कमजोर रह सकती है।"
मजबूत है अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा
इसमें कहा गया है कि राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन, सुधारों के जारी रहने और अर्थव्यवस्था का बुनियादी ढांचा मजबूत होने से अर्थव्यवस्था में बढ़त को गति मिलेगी। फिच सॉल्युशंस ने कहा कि वह भारत की आर्थिक वृद्धि दर को लेकर अपने अनुमान को संशोधित कर रही है। वित्त वर्ष 2019-20 में यह 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है जो पहले 6.8 प्रतिशत था।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ग्रोथ 15 माह के न्यूनतम स्तर पर
अगस्त माह में डिमांड और आउटपुट कम होने की वजह से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का ग्रोथ बीते 15 माह के न्यूनतम स्तर पर फिसल चुका है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने एक प्राइवेट सेक्टर सर्वे का हवाला देते हुए सोमवार को अपने एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी है।
जीडीपी दर घटकर 5 फीसदी हो चुकी है
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए में भारत की आर्थिक जीडीपी दर घटकर 5 फीसदी की स्तर आ गई है। इसके पहले कई अर्थशास्त्रियों ने अुनमान लगाया था कि इस तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 5.7 फीसदी के करीब रह सकती है। आईएचएस मार्किट के निक्केई मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स जुलाई माह के 52.5 के तुलना में घटकर 51.4 के स्तर पर आ गया है। मई 2018 के बाद यह सबसे न्यूनतम स्तर पर है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कंपनियों के मार्जिन पर असर
आईएचएस मार्किट के मुताबिक, अगस्त माह में मुद्रास्फिति के दबाव और अर्थव्यवस्था की सुस्ती देखने को मिली। बीते 9 माह के दौरान इनपुट कॉस्ट में लगातार तेजी देखने को मिली। वहीं, जुलाई की तुलना में अगस्त माह के दौरान आउटपुट प्राइस कम रहा है। इस वजह से कंपनियों के मार्जिन पर भी असर पड़ा है।
(एजेंसी इनपुट के साथ)
Updated on:
03 Sept 2019 08:49 am
Published on:
03 Sept 2019 08:48 am