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Ub Chhath 2025 : भादो में मनाया जाता है ये छठ, ज्योतिष ने बताया ऊब छठ पूजा विधि व मुहूर्त

Ub Chhath 2025 : ऊब छठ 2025 भाद्रपद कृष्ण षष्ठी तिथि को मनाया जाएगा। यह दिन भगवान बलराम के जन्मोत्सव, हलषष्ठी और चंदन षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। जानें 14 अगस्त की तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा, और पूजा विधि की पूरी जानकारी।

भारत

Dimple Yadav

Aug 12, 2025

Ub Chhath 2025
Ub Chhath 2025 (photo- grok ai)

Ub Chhath 2025 : भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को ऊब छठ मनाया जाता है। ऊब छठ को चन्दन षष्ठी, चानन छठ और चंद्र छठ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं देश की कई राज्यों में इस दिन को हलषष्ठी के रूप में मनाई जाती है।माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म हुआ था और उनका शस्त्र हल था इसलिए इस दिन को हलषष्ठी भी कहा जाता है। वहीं कई जगह इस दिन को चंदन षष्ठी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

इस बार षष्ठी तिथि 14अगस्त को है और इसी दिन ऊब छठ पर्व होगा। श्री लक्ष्मीनारायण एस्ट्रो सॉल्यूशन अजमेर की निदेशिका ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि भगवान कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम का जन्म दिवस (चंद्र षष्ठी पर्व) 14 अगस्त को ऊब छठ के रूप में मनाया जाएगा। सुहागिनें घर-परिवार की सुख समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए सूर्यास्त बाद चंदनयुक्त जल सेवन कर व्रत का संकल्प लेंगी। संकल्प के बाद निरंतर चन्द्रोदय तक खड़े रहकर उपासना एवं पौराणिक कथाओं का श्रवण करेंगी। ऊब छठ का व्रत और पूजा विवाहित स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए तथा कुंआरी लड़कियां अच्छे पति की कामना के लिए करती है। ऊब छठ के दिन मंदिर में भगवान की पूजा की जाती है। चांद निकलने पर चांद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद ही व्रत खोला जाता है। सूर्यास्त के बाद से लेकर चांद के उदय होने तक खड़े रहते है। इसीलिए इसको ऊब छठ कहते है।

ऊब छठ पूजा विधि

ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि महिलाएं और युवतियां पूरे दिन उपवास रखती है। शाम को दुबारा नहाती है और नए कपड़े पहनती है। मंदिर जाती है, वहां भजन करती है। चन्दन घिसकर टीका लगाती है। कुछ लोग लक्ष्मी जी और और गणेश जी की पूजा करते है। कुछ अपने इष्ट की। भगवान को कुमकुम और चन्दन से तिलक करके अक्षत अर्पित करते है। सिक्का , फूल , फल , सुपारी चढ़ाते है। दीपक , अगरबत्ती जलाते है। फिर हाथ में चन्दन लेते है। कुछ लोग चन्दन मुंह में रखते है। इसके बाद ऊब छट व्रत की कहानी सुनते है साथ ही गणेशजी की कहानी सुनते है। इसके बाद पानी भी नहीं पीते जब तक चांद न दिख जाये। इसके अलावा बैठते नहीं है। खड़े रहते है। चांद दिखने पर चांद को अर्ध्य दिया जाता है। चांद को जल के छींटे देकर कुमकुम , चन्दन , मोली , अक्षत चढ़ाएं। भोग अर्पित करें। जल कलश से जल चढ़ायें। एक ही जगह खड़े होकर परिक्रमा करें। अर्ध्य देने के बाद व्रत खोला जाता है। लोग व्रत खोलते समय अपने रिवाज के अनुसार नमक वाला या बिना नमक का खाना खाते है।

क्या है शुभ मुहूर्त

ज्योतिषाचार्या एवं टैरो कार्ड रीडर नीतिका शर्मा ने बताया कि पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 14 अगस्त को सुबह 4:23 बजे शुरू होगी और 15 अगस्त को सुबह 2:07 बजे खत्म होगी। कोई भी व्रत उदया तिथि के आधार पर रखा जाता है, इसलिए हलषष्ठी 14 अगस्त को मनाई जाएगी। यह त्योहार रक्षाबंधन के 6 दिन बाद और जन्माष्टमी से पहले आता है।

ऊब छठ व्रत कथा

ज्योतिषाचार्या नीतिका शर्मा के अनुसार एक गांव में साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे। पत्नी रजस्वला होने पर भी सभी काम करती थी, रसोई में जाना, पानी भरना, खाना बनाना आदि। उनका एक पुत्र था। पुत्र की शादी के बाद साहूकार और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। अगले जन्म में साहूकार बैल और उसकी पत्नी कुतिया बनी और पुत्र के घर ही रहने लगे। श्राद्ध के दिन पुत्र ने खीर समेत कई व्यंजन बनवाए। तभी एक चील मरे हुए सांप को ले जाते हुए खीर में गिरा गई। कुतिया ने खतरे को भांपकर खीर में मुँह डाल दिया ताकि कोई उसे न खा सके। यह देखकर बहू ने गुस्से में डंडे से उसकी पीठ तोड़ दी।

रात में कुतिया ने बैल से कहा कि तेरे लिए श्राद्ध हुआ, तूने पेट भर खाया होगा। मुझे तो खाना भी नहीं मिला, ऊपर से मार भी पड़ी। बैल बोला मुझे भी कुछ नहीं मिला, खेत में हल जोतता रहा। यह बातें बहू ने सुन ली और पति को बताईं। पंडित ने बताया कि बैल उनके पिता और कुतिया उनकी मां हैं। मां को यह जन्म इसलिए मिला क्योंकि रजस्वला अवस्था में भी उन्होंने रसोई में काम किया और पानी भरा। पंडित ने उपाय बताया कि उनकी कुंवारी बेटी ऊब छठ व्रत करे, शाम को पूजा कर चांद को अर्ध्य दे और अर्ध्य का पानी बैल व कुतिया पर गिरे, तो उनका मोक्ष हो जाएगा। बेटी ने व्रत किया और चांद को अर्ध्य देकर पानी बैल और कुतिया पर डाला। उसी समय दोनों को मोक्ष प्राप्त हुआ।