Premanand Maharaj: सबकी नजर में भक्ति का अलग-अलग मतलब होता है। लेकिन एक असली सच्चा भक्त कैसा होता है? इस प्रश्न का उत्तर प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचनों में बड़े सरल और गहरे शब्दों में दिया है। उनके अनुसार सच्चा भक्त वही है, जो अपने मन, बुद्धि और जीवन को बिना किसी विचार-विवेक के पूर्णतः संत और सद्गुरु की आज्ञा में समर्पित कर दे।
भक्त का जीवन अहंकार से रहित, सरल और दयालु होता है। उसमें कभी द्वेष, क्रोध या किसी के प्रति बुराई की भावना नहीं रहती। वह सुख-दुख, लाभ-हानि, जन्म-मृत्यु सबको समान भाव से देखता है। उसकी दृष्टि समदर्शी होती है और वह सदा दूसरों के कल्याण की भावना से जीता है।
भक्त का हृदय कोमल और करुणामय होता है। वह अपने जीवन को साधना और उपकार में लगाता है। उसके भीतर कोई कामना, स्वार्थ या दिखावा नहीं होता। उसका मन शांत, संयमी और जितेंद्रिय होता है। वह यथा-लाभ भोजन करता है, वासनाओं और भोग-विलास से दूर रहता है। ऐसा भक्त न कभी अपनी प्रशंसा चाहता है और न ही दूसरों का अपमान करता है। वह सदा दूसरों को मान देता है और स्वयं को छोटा समझता है। उसके अंदर मित्रता और करुणा का भाव रहता है, पर ममता और आसक्ति नहीं होती।
सच्चा भक्त वही है जो पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ सद्गुरु का संग करे। वह गुरुदेव के वचनों को अपने जीवन की खेती मानकर उन्हें हृदय में बोता है। यदि उसका मन अहंकार और संदेह से भरा रहेगा तो संत के उपदेश कभी फलित नहीं होंगे। जैसे वर्षा का जल केवल खाली भूमि पर ही ठहरता है, वैसे ही संतों की कृपा केवल विनम्र और श्रद्धावान हृदय में टिकती है।
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि जो भक्त अपने मन और बुद्धि को गुरु के चरणों में अर्पित कर देता है, वही सच्चे अर्थों में निहाल होता है। ऐसे भक्त का हृदय धीरे-धीरे बदलता है और उसमें स्वतः भक्ति, करुणा और शांति का संचार होने लगता है।
Published on:
16 Aug 2025 05:44 pm