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तारकासुर राक्षस का वध करने महादेव के बड़े बेटे के साथ क्यों भेजा गया था मयूर

तारकासुर राक्षस का वध करने महादेव के बड़े बेटे के साथ क्यों भेजा गया था मयूर

दमोह

Samved Jain

Aug 05, 2025

Peacocks Died in Mandsaur
Peacocks Died in Mandsaur

दमोह. स्थानीय सिविल वार्ड 7 स्टेडियम के पास चल रही शिव महापुराण कथा के सातवें दिवस में कथा व्यास पंडित रवि शास्त्री ने बताया कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। वह तेजस्वी बुद्धिमान और अजेय योद्धा थे। जब वे बालक थे तब भी उनके भीतर एक खास तरह की करुणा और मित्रता की भावना थी। जब देवताओं को राक्षस तारकासुर से भय लगने लगा तो शिव ने कहा केवल मेरा पुत्र कार्तिकेय ही इस दैत्य का अंत कर सकता है, लेकिन एक बालक को युद्ध में जाना था माता पार्वती चिंतित थी। इतनी दूर और इतनी कठिन यात्रा कौन इसकी रक्षा करेगा उसी समय आकाश से एक दिव्य मयूर प्रकट हुआ। उसकी पूंछ में इंद्रधनुष था। पंखों में आकाश की शांति और आंखों में प्रेम वह बोला माता मैं भगवान कार्तिकेय का वाहन बनकर उनकी सेवा करूंगा। मैं उनका मित्र रक्षक और सहयात्री बनूंगा। इस तरह कार्तिकेय और मयूर का पवित्र रिश्ता बना न सिर्फ वाहन और देवता का, बल्कि एक सच्चे मित्र और विश्वासपात्र साथी का मयूर की पीठ पर सवार होकर कार्तिकेय ने सातों दिशाओं की यात्रा की। वह आकाश की ऊंचाइयों से होते हुए जंगलों पर्वतों और समुद्रों को पार करते गए रास्ते में उन्होंने सिर्फ राक्षसों से ही नहीं बल्कि डर क्रोध और अहंकार जैसे आंतरिक शत्रुओं से भी लडऩा सीखा और अंत में उन्होंने तारकासुर को परास्त किया। क्रोध से नहीं बल्कि धर्म और विवेक से देवताओं ने जयघोष किया जय स्कंद जय कुमार जय कार्तिकेय भगवान कार्तिकेय ने तब अपने मयूर के गले से लगकर कहा तू मेरा वाहन नहीं मेरा सबसे प्रिय मित्र है। यह कथा सिर्फ शौर्य की नहीं बल्कि मित्रता कर्तव्य और साहस की भी है। भगवान कार्तिकेय और उनका मयूर हमें सिखाते हैं कि हर योद्धा को एक ऐसा साथी चाहिए जो बिना बोले उसका साथ निभाए। भगवान कार्तिकेय जिन्हें मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं देवताओं को तारकासुर से बचाने के लिए उनका जन्म और कृतिकाओं द्वारा उनका पालन पोषण शामिल है।