दमोह. दमोह नगरपालिका में नियमों को तोड़कर कैसे घोटाला होते हैं, बीते साल हुई जांच में सब सामने आ गया था। जिसमें नगरपालिका ने क्रय के नियमों की धज्जियां उड़ाकर एक महीने में एक फर्म से ३९ बार क्रय कर ३७ लाख के भुगतान कर दिए। इतना ही नहीं १५५ से अधिक ऐसी फर्में जो अलग-अलग व्यवसाय के लिए दर्ज थीं, उनके बिलों पर २ करोड़ से अधिक भुगतान किए गए थे। मामला सामने आने के बाद कलेक्टर ने मामले की जांच कराई थी। जिसमें बड़ी वित्तीय अनियमितता सामने आई थी, लेकिन साल भर से इस जांच पर पर्दा डला हुआ है और अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
दरअसल, पीएम आवास योजना शहरी, आउटसोर्स कर्मचरियों से संबंधित २०२२-२३ व २०२३-२४ में स्वच्छता भारत मिशन व अन्य मदों में भुगतान संबंधी बिलों में गड़बड़ी हुई थी। जिसमें नियमों को तोड़ते हुए तत्तकालीन सीएमओ भैयालाल सिंह ने करीब २ करोड़ के भुगतान १५५ फर्मों को कर दिए थे। मामला सुर्खियों में आने के बाद जब जांच हुई तो बड़ी वित्तीय गड़बड़ी मिली थी।
फल बेचने वाली फर्मों को श्रमिक, सफाई, वाहन पेंटिंग के भुगतान
कलेक्टर की समिति ने जब मामले की जांच की तो ९० फर्म जिनके बिलों पर भुगतान किया गया था, वह संदिग्ध मिली थीं। इनके न तो जीएसटी सही पाए गए और न ही टीडीएस। इन बिलों में फर्जी नंबर डाले गए थे। एक फर्म भक्ति इंटरप्राइजेज जो कि फल बेचने के लिए रजिस्टर की गई थी, उसके नाम पर श्रमिकों के ठेका, स्वच्छता सामग्री, कार्यालयीन सामग्री, पेड़ पौधों की छटाई, तालाब की सफाई, फिनाइल पाउडर, टिपर वाहन में सुधार और पेंटिंग तक के कार्य कराए गए थे। इसी तरह अन्य फर्मों को भी इसी तरह फर्जी तरह से भुगतान किया गया था।
ऐसे नगरपालिका नियमों की उड़ाई धज्जियां
१- नियम: सीएमओ एक माह में २० हजार तक का क्रय बिना निविदा या कोटेशन के कर सकता है, लेकिन २०२२-२३ व २०२३-२४ के देयकों की जांच में माह जुलाई २०२२ मेंं महाकाल कंस्ट्रक्शन एंड सप्लायर दमोह से कुल ३९ बार क्रय किया गया, जिसका ३७ लाख ५१ हजार ६७१ रुपए भुगतान करना पाया गया।
२- नियमानुसार एक लाख से अधिक क्रयों की दशा में निविदा आमंत्रित करना होती है, लेकिन ऐसे मामलों में क्रय के बाद भी निविदा नहीं लगाई गई। सीएमओ द्वारा एक ही अवधि में एक से ज्यादा बार समान फर्मों का भुगतान किया जाना पाया गया।
३- देयकों का रेकॉर्ड सही मिलना चाहिए और टैक्स राशि शासन के खाते में जाना चाहिए, लेकिन जांच में रेकॉर्ड दुरस्त नहीं मिले। देयकों को वाउचर संलग्न नहीं मिले थे। देयकों में कांट छांट पाई गई। देयकों पर टीडीएस कटौती २ प्रतिशत दर से हुई, लेकिन यह राशि शासन के पक्ष में जमा नहीं हुई।
फर्जी जीएसटी नंबर पर हो गए लाखों के भुगतान
जांच समिति ने जब इन १५५ देयकों पर हुए भुगतान की जांच की तो और भी चौकाने वाले तथ्य सामने आए थे, जो अपराध की श्रेणी में आते है। संजय हार्डवेयर, देवांश सेल्स एंड सप्लायर, श्रीराम इंटरप्राइजेज, शांभवि इंटरप्राइजेज के जीएसटी नंबर पोर्टल पर जांच करने पर फर्जी पाए गए। इसके अलावा ९० ऐसी फर्में थीं, जिन्हें बिना जीएसटी के ही भुगतान कर दिया गया। फर्जी जीएसटी वाली देवांश सेल्स एंड सप्लायर को अप्रैल २०२३ से नवंबर २०२३ तक १२ बिलों पर १० लाख ४७७९८ रुपए भुगतान हो गया। जबकि शांभवि को २१ बिलों पर ४ लाख २५ हजार ५२३ को भुगतान हुआ। वहीं भक्ति इंटरप्राइजेज को बिना जीएसटी के १९ बिलों पर १३ लाख ४२ हजार ७१३ के भुगतान किए गए।
कलेक्टर के आदेश को भी किया अनदेखा
कलेक्टर सुधीर कोचर ने ५ जुलाई २०२४ को ने जांच के बाद लिखा था कि जिन अधिकारियों/ कर्मचारियों/ फर्मों की संलिप्तता इन अनियमितताओं में प्रमाणित पाई गई है, उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। भविष्य में इस प्रकार की अनियमितता न हो, इसके लिए अनुशंसाओं का अक्षरश: पालन हो। साथ ही संबंधितों पर एफआईआर कराने व वसूली करने लिखा था, लेकिन साल बीतने के बाद भी कलेक्टर के आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
वर्शन
मामले में जांच कराई गई थी। उस पर क्या-क्या एक्शन हुए। इसका फॉलोअप लेता हूं।
सुधीर कोचर, कलेक्टर दमोह
Published on:
05 Aug 2025 10:01 am