हिमांशु धवल@ चित्तौडगढ़़. शहर के भोई खेड़ा स्थित संगम महादेव जन-जन की आस्था का केन्द्र है। बेड़च और गंभीरी नदी का मिलन होने के कारण इस मंदिर का नाम संगम महादेव पड़ा। मेवाड़ के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार होने के कारण यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। संगम में अस्थियों का भी विसर्जन किया जाता है। शौर्य, भक्ति और शक्ति की नगरी में भगवान भोलेनाथ के कई प्रसिद्ध मंदिर है। भोई खेड़ा में स्थित संगम महादेव मंदिर में स्थापत्य कला की अनूठी मिशाल देखने को मिलती है। मंदिर का निर्माण मौर्य काल में हुआ था। मंदिर में जो प्रतिमाएं हैं वह पत्थरों को तराश कर बनाई हुई है। मंदिर का निर्माण और यहां पर लगा त्रिशूल बेहद आकर्षक लगता है। मंदिर का अब तक तीन बार जीर्णोद्धार हो चुका है। आखिरी बार 1962 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। वर्तमान में मंदिर परिसर में भगवान गणेश के मंदिर का निर्माणाधीन है। सावन माह में यहां पर सुबह से शाम तक दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां पर अभिषेक और सहधारा सहित कई अनुष्ठान भी होते हैं। शिवरात्रि में मेले का आयोजन किया जाता है।
मंदिर के महंत शिवगिरी ने बताया कि संगम महादेव में भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के पीछे दीवार में भगवान विष्णु की मूर्ति बनी हुई है। चित्तौड़ में यह संभवतया पहला मंदिर हैं जहां पर भोलेनाथ के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा है। मंदिर परिसर में निर्माणाधीन मंदिर में भोलेनाथ के शिवलिंग के पीछे मां पार्वती की प्रतिमा है। यह भी मौर्यकाल की बताई जाती है। मंदिर परिसर में भगवान गणेश सहित कई भगवान की पत्थर की मूर्तियां रखी हुई है, जिन्हें देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह सैकडों वर्ष पुरानी है।
भोईखेड़ा में गंभीर नदी और बेड़च नदी का संगम होता है। गंभीरी नदी की विशेषता है कि यह उत्तर दिशा में ही बहती है। दोनों नदियों का संगम होने के कारण यहां पर मनुष्य के मरने के बाद अस्थि विसर्जन आदि का कार्य किया जाता है। इसके लिए नदी के किनारे पर घाट बने हुए हैं। यहां पर पूरे जिले से लोग आते हैं।
संगम महादेव मंदिर में पूरे सावन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। शिवरात्रि पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। पहले इसे 80 गांवों का मंदिर कहा जाता था। लेकिन समय के साथ मान्यता के चलते अब पूरे मेवाड़ से लोग यहां पर दर्शन के लिए आते हैं। यहां पर मन्नत पूरी होने पर प्रसादी आदि भी की जाती है।
मंदिर परिसर में कई संतों की समाधि बनी हुई है। मंदिर के महंत शिवगिरी ने बताया कि मंदिर की सेवा पूजा कार्य पीढ़ी दर पीढ़ी किया जा रहा है। पिछले कई वर्षो से वह सेवा पूजा और मंदिर की देखरेख कर रहे हैं। अब उनके चाचा का लडक़ा भी पूजा पाठ में सहयोग करता है।
Updated on:
04 Aug 2025 10:41 am
Published on:
04 Aug 2025 10:34 am