चित्तौड़गढ़. मेवाड़ में अब जल्द लीची की पैदावार होती दिखाई देगी। मेवाड़ की जलवायु लीची के लिए अनुकूल बताई जा रही है। इस कारण मेवाड़ में तीन स्थानों पर 24-24 पौधे लगाकर शोध किया जा रहा है। यह प्रयोग सफल होने पर इसके पौध तैयार किए जाएंगे। इससे सीताफल के साथ काश्तकार लीची भी उगा सकेंगे।
बिहार के समस्तीपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निर्देश पर मेवाड़ में लीची की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत सीताफल उत्कृष्टता केंद्र चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ कृषि विज्ञान केंद्र और उदयपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में पिछले साल 24-24 शाही लीची वैरायटी के पौधे लगाए हैं। सीताफल उत्कृष्टता केंद्र चित्तौड़ में आठ हेक्टेयर में 24 पौधे लगाए थे। वर्तमान में पौधे 3 फीट से अधिक लंबाई के हो गए हैं। तीनों केंद्रों पर लगाए पौधों पर कृषि वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहे हैं। उनकी ग्रोथ, जलवायु का पौधे पर असर समेत कई विषयों पर अनुसंधान जारी है।
अमूमन लीची की पैदावार ठंडे प्रदेशों में होती है। ठंडे स्थानों पर उगने वाले फल को राजस्थान की गर्मी में उगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसमें तीन साल में फल लगना प्रारंभ होते हैं। इसके एक पेड़ में पांच साल बाद 50 से 80 किलो तक फल लगते हैं। एक पेड़ 25 साल तक फल देता है।
मेवाड़ में चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ और उदयपुर में लीची के पिछले साल पौधे लगाए हैं। उन पर शोध हो रहा है। सीताफल उत्कृटता केन्द्र में 24 पौधे लगाए थे। पौधों की ग्रोथ अच्छी है। 2027 में फल आने की उम्मीद है।
डॉ. शंकर लाल जाट, उपनिदेशक, अनुसंधान सीताफल उत्कृष्टता केन्द्र चित्तौड़गढ़
Published on:
01 Aug 2025 10:35 am