जिले में जीएसटी चोरी का ऐसा नेटवर्क चल रहा है जिसकी भनक तक प्रशासन को सही समय पर नहीं लग पा रही। व्यापारी बसों और ट्रेनों को अपने निजी मालवाहक बना चुके हैं। हर दिन छतरपुर पहुंच रही बसों में यात्रियों से ज़्यादा पार्सल भरे होते हैं और इनमें से ज़्यादातर पर जीएसटी नहीं दिया जाता। परिणामस्वरूप, सरकारी खजाने को हर महीने लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है।
स्थानीय व्यापार संगठनों के एक आंतरिक सर्वे के मुताबिक छतरपुर और आसपास के जिलों में बसों और ट्रेनों से आने वाला ऐसा माल सालाना 150 से 200 करोड़ रुपए तक पहुंचता है। यदि औसतन 12 प्रतिशत जीएसटी की दर लगाएं तो सालाना 18 से 24 करोड़ रुपए की चोरी हो रही है।
दिल्ली से चलने वाली छतरपुर की बसों की बात करें तो रोजाना लगभग आठ बसें छतरपुर आती हैं। हर बस में औसतन 40 से 50 पार्सल भरे होते हैं। इनमें से लगभग 80 प्रतिशत सामान बिना जीएसटी के आता है। एक अनुमान के मुताबिक, हर बस में करीब 5 से 6 लाख रुपए का माल आता है। यानी रोजाना लगभग 40 लाख रुपए का माल जीएसटी से बचाकर जिले में लाया जा रहा है। अगर औसतन 12 प्रतिशत जीएसटी की दर मानें तो प्रतिदिन करीब 4.5 से 5 लाख रुपए की जीएसटी चोरी हो रही है। महीने के हिसाब से यह आंकड़ा करीब 1.2 से 1.5 करोड़ रुपए के आसपास पहुंच जाता है।
दिल्ली से रेडीमेड गारमेंट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल एक्सेसरीज और स्टेशनरी।
आगरा से स्टेशनरी, प्लास्टिक हाउसहोल्ड आइटम और गिफ्ट पैकिंग।
मथुरा से कृत्रिम ज्वेलरी और डेकोरेशन आइटम।
ग्वालियर से मावा, पनीर, नमकीन जैसी खाद्य सामग्री।
बस मालिकों और कंडक्टरों को अतिरिक्त भुगतान देकर यह सामान सीटों के नीचे, डिक्की और ऊपर की रैक व छतों पर पैक कर दिया जाता है। यात्रियों के लिए रिजर्व की गई कुछ सीटों पर भी पैकेट रख दिए जाते हैं। इस गुपचुप व्यवस्था के चलते जीएसटी विभाग की नजरें इन पर नहीं पड़ पातीं क्योंकि सामान किसी ट्रांसपोर्ट रजिस्टर में दर्ज ही नहीं होता।
हरपालपुर स्टेशन से निकलने वाली संपर्क क्रांति, महाकौशल और बुंदेलखंड एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में भी यही खेल हो रहा है। कई व्यापारी खुद टिकट लेकर यात्रा करते हैं और साथ में 20 से 30 बड़े पार्सल लेकर जाते हैं। ट्रेनों में सामान छुपाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि चेकिंग कम होती है और पार्सल बुकिंग की जरूरत नहीं पड़ती।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि दुकानदार ग्राहकों से 12 से 18 प्रतिशत तक जीएसटी वसूलते हैं। लेकिन यह राशि सरकार के खजाने में नहीं जाती क्योंकि जो बिल दिया जाता है, वह फर्जी फर्म के नाम पर तैयार किया गया होता है। जिन व्यापारी अपने माल पर पूरा जीएसटी देते हैं, वे अब बाजार में टिकने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि अवैध तरीके से आया माल सस्ता बिकता है और ग्राहक वहीं से खरीद लेते हैं। इससे उनकी बिक्री कम हो रही है और वे सीधी प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट रहे हैं।
ओवरलोड यात्री बसों पर कार्रवाई की जा रही है। जीएसटी चोरी का संदेह होने पर मामले को संबंधित विभाग को भेजा जा रहा है। जीएसटी, आरटीओ, पुलिस की संयुक्त कार्रवाई के लिए पहल की जाएगी।
बृहस्पति साकेत, प्रभारी यातायात थानाकर को लेकर वित्तीय वर्ष में छतरपुर में तीन से चार कार्रवाई की गई हैं। बस से सामान लाकर टैक्स चोरी का मामला भी संज्ञान में आया है। जल्द कार्रवाई की जाएगी।
विवेक दुबे, अस्सिटेंट कमिश्नर, एंटी एवेजन ब्यूरो जीएसटी, सतना
Published on:
28 Jul 2025 10:20 am