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सर्वे के बाद नियमों में फिर उलझेगी मदद, 35 फीसदी से कम नुकसान पर आपाद राहत नहीं, नेताओं के वादे रह जाएंगे सूखे

जिन किसानों की मेहनत इस पानी में बह गई, उन्हें अब भी मुआवज़े की कोई उम्मीद नजऱ नहीं आ रही। वजह यह कि पिछले साल जनवरी-फरवरी में जब ओलावृष्टि से जिले की सैकड़ों हेक्टेयर में फसल चौपट हुई थी, तब भी किसानों को एक रुपए की राहत नहीं मिली थी।

crop destroy in rain
अतिवृष्टि में हुआ ये हाल

बारिश का यह मौसम किसानों के लिए राहत नहीं, एक और मुसीबत लेकर आया है। जुलाई की अतिवृष्टि ने खेतों में बोई गई फसलों को बर्बाद कर दिया, लेकिन जिन किसानों की मेहनत इस पानी में बह गई, उन्हें अब भी मुआवज़े की कोई उम्मीद नजऱ नहीं आ रही। वजह यह कि पिछले साल जनवरी-फरवरी में जब ओलावृष्टि से जिले की सैकड़ों हेक्टेयर में फसल चौपट हुई थी, तब भी किसानों को एक रुपए की राहत नहीं मिली थी।

तीन बार आपदा, एक बार भी नहीं मिला मुआवज़ा

गौरिहार, लवकुशनगर, चंदला, बड़ामलहरा, राजनगर और नौगांव ब्लॉकों के किसान अब भी उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं, जब रबी की लहलहाती फसलें पिछले वर्ष जनवरी और फरवरी में तीन बार ओलों की चपेट में आ गई थीं। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उस समय सभाओं में भरोसा दिलाया था, सर्वे के बाद मुआवज़ा मिलेगा। लेकिन हकीकत यह रही कि तीनों डिटेल सर्वे में नुकसान 24 प्रतिशत से कम दिखा दिया गया।

ये कहते हैं नियम

नियम कहता है कि 35 प्रतिशत से कम नुकसान पर न तो प्रधानमंत्री फसल बीमा की राशि मिल सकती है और न ही आरबीसी 6(4) के तहत राहत। क्योंकि फसल बीमा में 35 प्रतिशत से अधिक नुकसान का नियम है। वहीं, आरबीसी 6(4) के प्रावधानों के अनुसार 2 हेक्टेयर से कम भूमि वाले और 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि वाले किसानों की सिंचित-असिंचित भूमि में 33 से 50 प्रतिशत फसल की क्षति होने पर आठ हजार रुपए प्रति हेक्टेयर से लेकर 26 हजार रुपए प्रति हेक्टयर तक मुआवजा दिया जाता है।

किसान बोले- वादे बड़े, पर जमीन पर सन्नाटा

किसान जगदीश पटेल कहते हैं, जब ओले गिर रहे थे, तब कहा गया कि सब मदद करेंगे। बाद में कहा गया नुकसान मानक से कम है, इसलिए कुछ नहीं मिलेगा। किसान नेता प्रेम नारायण मिश्रा का कहना है, किसानों को सिर्फ दिलासा दिया जाता है। सर्वे रिपोर्ट ऐसी बनाई जाती है कि किसान अपात्र हो जाएं, बीमा कंपनियां और शासन दोनों बच निकलते हैं।

अब अतिवृष्टि में फिर सर्वे, फिर वही पुरानी उलझन

जिले में जुलाई की बारिश और बाढ़ जैसी स्थिति ने कई जगह खेतों में पानी भर दिया है। प्रशासन ने फिर से सर्वे की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन किसानों को आशंका है कि पहले की तरह ही रिपोर्ट में नुकसान का प्रतिशत मानक से कम दिखा दिया जाएगा और उन्हें फिर राहत की उम्मीद पर ही छोड़ दिया जाएगा।

फसल बीमा में लगती है 2 फीसदी राशि

ओलावृष्टि और अतिवृष्टि में गेहूं, चना, मसूर, सरसों, लहसुन, मेथी, मटर और कई सब्जजियां राहत के दायरे में आती हैं। पर ज़मीनी हकीकत यही है कि राहत का लाभ कागज़ी नियमों में उलझकर रह जाता है। उप संचालक कृषि डॉ. केके वैद्य ने बताया कि खरीफ के लिए उड़द, मूंग, ज्वार, तिल, मूंगफली, धान, सोयाबीन और अरहर जैसी फसलों का प्रधानमंत्री फसल बीमा 31 जुलाई तक कराया जा सकता है। केवल 2 प्रतिशत राशि जमा करने पर बीमा हो जाता है। ऋणि और अऋणि दोनों किसान लोक सेवा केंद्र या खुद के मोबाइल से बीमा कर सकते हैं।

इनका कहना है

ओलावृष्टि से फसल नुकसानी का तीन बार डिटेल सर्वे कराया गया था। डिटेल सर्वे में 24 फीसदी से अधिक फसल नुकसान नहीं पाई गई। जिले का एक भी किसान राहत राशि के लिए पात्र नहीं था, तो शासन से सहायता नहीं मांगी गई।

आदित्य सोनकिया, अधीक्षक, भू-अभिलेख

निर्देश जारी किए गए हैं। संयुक्त रूप से फसलों के नुकसान का सर्वे कराया जा रहा है। नियम व पात्रता अनुसार अतिवृष्टि से हुए नुकसान के लिए राहत राशि दी जाएगी। जिनके आवास गिरे, मवेशी मारे गए, उन्हें मुआवजा देंगे। फसल की सर्वे रिपोर्ट पर राहत राशि दी जाएगी।

पार्थ जैसवाल, कलेक्टर