ऑनलाइन धोखाधड़ी को रोकने और साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए टेलीकॉम विभाग (DoT) ने मोबाइल नंबर वैलिडेशन (MNV) का एक नया मसौदा नियम बनाया है। सरकार का कहना है कि यह नियम डिजिटल सेवाओं में पारदर्शिता लाएगा और फर्जीवाड़े पर रोक लगाएगा। लेकिन इसका असर आम आदमी, ग्रामीण परिवारों, छोटे कारोबारियों और स्टार्टअप्स पर भारी पड़ सकता है।
डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) का प्रस्ताव है कि बैंक, फिनटेक और अन्य कंपनियां जो यूजर की पहचान मोबाइल नंबर के जरिए करती हैं, मसलन ऐप्स पर साइन-अप, डिजिटल पेमेंट आदि करने वाले अब सरकार के नए मोबाइल नंबर वैलिडेशन (MNV) प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अनिवार्य करेंगे। हर बार जब कोई संस्था किसी मोबाइल नंबर को वेरिफाई करेगी, उसे एक तय शुल्क देना होगा मसलन बैंक के लिए 1.50 रुपये प्रति वेरिफिकेशन और अन्य निजी संस्थाओं के लिए 3 रुपये प्रति वेरिफिकेशन देना होगा। अगर कोई नंबर फेक या संदिग्ध साबित होता है तो उसे 90 दिनों के लिए बंद कर दिया जाएगा। इस नियम के तहत कोई भी कंपनी अब अपने तरीके से मोबाइल नंबर जांच नहीं कर पाएगी। सबको सिर्फ DoT के सिस्टम का ही इस्तेमाल करना होगा।
MNV ड्राफ्ट में बैंकों का नाम नहीं है, लेकिन यह तय है कि एक ही मोबाइल नंबर से कई अकाउंट चलाना अब मुश्किल हो जाएगा। हर मोबाइल नंबर एक व्यक्ति के नाम और पहचान से जुड़ा होता है। बार-बार वेरिफिकेशन कराने पर लागत बढ़ेगी तो बैंक या संस्थाएं अपने खर्च को कम करने के लिए ग्राहकों से कह सकती हैं कि हर अकाउंट के लिए अलग मोबाइल नंबर इस्तेमाल करें।
जानकारों की मानें तो भारत में लाखों परिवारों के पास सिर्फ एक ही मोबाइल फोन होता है। उसी एक फोन से दादा-दादी पेंशन देखते हैं, माता-पिता नौकरी और बैंकिंग करते हैं और बच्चे स्कूल ऐप्स इस्तेमाल करते हैं। इस नियम के आने से इमरजेंसी में किसी और के फोन से पैसे ट्रांसफर करना जटिल हो जाएगा। एक ही नंबर पर कई UPI खाते अब संदिग्ध माने जा सकते हैं। अब अगर हर व्यक्ति के लिए अलग मोबाइल नंबर अनिवार्य हो गया तो ये परिवार डिजिटल सेवाओं से बाहर हो जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में एक ही स्मार्टफोन से पूरा परिवार चलता है। अगर MNV नियम लागू हो जाता है, तो:
- पेंशन बंद हो सकती है
- स्कूल ऐप्स नहीं चलेंगे
- सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलेगा
- महिला सदस्य जो खुद का फोन नहीं रखतीं, डिजिटल दुनिया से कट जाएंगी
- प्रवासी मजदूर जो शहरों में एक ही फोन साझा करते हैं, वे पैसे भेजने से वंचित रह जाएंगे
जानकार कहते हैं कि एक सामान्य सा दिखने वाला यह नियम आम जीवन को उलझा सकता है। मां बच्चों को पैसे नहीं भेज पाएंगी, बच्चे ऑनलाइन क्लास नहीं कर पाएंगे, घरेलू नौकर डिजिटल पेमेंट नहीं ले पाएंगे, टेलीमेडिसिन से बुजुर्गों की अपॉइंटमेंट बुकिंग नहीं हो पाएगी, वैक्सीनेशन रजिस्ट्रेशन मुश्किल हो जाएगा, एक परिवार को तय करना होगा कि कौन डिजिटल सुविधा लेगा और कौन नहीं…ऐसी तमाम दिक्कतें आने वाली हैं।
सबसे ज्यादा चोट छोटे कारोबारियों पर पड़ेगी। मान लीजिए एक छोटा फूड डिलीवरी ऐप है, जिसके 10,000 यूजर्स हैं। अगर हर यूजर का मोबाइल नंबर वेरिफाई करना पड़े तो हर महीने 30,000 का खर्च आएगा। स्टार्टअप्स जो पहले ही संघर्ष कर रहे हैं, अब वे इस नई लागत के बोझ को नहीं झेल पाएंगे। फूड डिलीवरी, ऑनलाइन शॉपिंग, कैब बुकिंग जैसी सेवाओं की कीमत बढ़ेगी। छोटे दुकानदार जो QR कोड से पेमेंट लेते हैं, वे अब डिजिटल पेमेंट से बचेंगे। आपके नजदीकी प्लंबर, बिजली मिस्त्री, मेकअप आर्टिस्ट आदि बुकिंग ऐप्स से दूर हो सकते हैं। ग्राहकों से जुड़े हर मोबाइल नंबर की जांच करने के लिए लाखों की लागत आएगी, जो स्थानीय कारोबरी नहीं उठा सकते।
फायदा : सरकार को हर वेरिफिकेशन पर पैसे मिलेंगे और बड़ी कंपनियां जो इस खर्च को वहन कर सकती हैं, बाजार में और मजबूत होंगी।
नुकसान : आम जनता, गरीब और ग्रामीण परिवार, छोटे दुकानदार व स्टार्टअप्स और बुजुर्ग, महिलाएं व बच्चे नुकसान में रहेंगे।
Updated on:
02 Aug 2025 11:44 am
Published on:
02 Aug 2025 11:39 am